एमएसएमई मंत्रालय की वेबसाइट सरकारी वादों और इरादों के बीच अंतर का खुलासा करती है। वेबसाइट पर मौजूद आंकड़ों के मुताबिक 2015-16 में केंद्र सरकार से जुड़ी पीएसयू ने करीब 1.35 लाख करोड़ की खरीदारी की जिसमें से 18000 करोड़ रुपये की खरीदारी एमएसएमई से हुई है, यानि महज 13 फीसदी।
जी हां यहीं है सारा खेल। दरअसल सरकारी कंपनियां ठेका कुछ इस तरह निकालती हैं कि छोटी और मझोली स्तर की कंपनियां उसमें फिट ही नहीं बैठती। एमएसएमई संगठन एफआईएसएमई की शिकायत है कि सरकारी खरीद की प्रक्रिया जटिल और महंगी है।
स्टार्टअप और मेक इन इंडिया का शोर है और ईज ऑफ डूइंग बिजनेस पर जोर है, ऐसे में बुरे दौर से गुजर रहे छोटे कारोबारियों के लिए ऐसी दुश्वारियां चौकाने वाली हैं। संसद में जब एमएसएमई से सरकारी खरीद पर केंद्र सरकार से पूछा गया तो सरकार का कहना था कि छोटे कारोबारी के पास वो क्षमता नहीं है कि वो सरकारी कंपनियों को सामान बेच पाएं। यानि यहां पर सरकार भी कंपनियों का पक्ष लेते हुए नजर आ रही है।
Source: Money Control