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अब उत्पादों के श्रेणीकरण पर चल रही है जीएसटी की बहस

पैराशूट बालों में लगाने वाला तेल है या खाने वाला? किटकैट चॉकलेट है या बिस्किट? विक्स टैबलट दवाई है या मिठाई? ये सब तय करने की कवायद टैक्स देने वालों और टैक्स वसूलने वालों के लिए शब्दों का हेरफेर भर नहीं, बल्कि अरबों रुपये का मामला है।

क्योंकि जीएसटी सिस्टम में उत्पादों पर उनकी श्रेणी के मुताबिक टैक्स वसूले जाने हैं। सरकार 1 जुलाई को वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) लागू करने जा रही है।

ऐसे में उत्पादों की कैटिगरीज तय करने पर बहस जारी है ताकि कोई दुविधा नहीं रहे। इतना ही नहीं, सरकार टैक्स के उन पुराने मामलों को भी परख रही है जो उत्पादों के श्रेणीकरण की पेंच में फंस गए। इन मामलों से वाकिफ एक व्यक्ति ने इसकी जानकारी दी। उनके मुताबिक जीएसटी से सरकार का राजस्व बढ़ना तय माना जा रहा है।

एक सूत्र ने बताया, ‘अतीत में कुछ टैक्स ऑफिसरों ने रिटेल सेगमेंट समेत कई उत्पादों के श्रेणीकरण को चुनौती दी थी जो कोर्ट या अपीलीय प्राधिकार के स्तर पर खारिज हो गईं।’

उन्होंने कहा, ‘अब हमारे पास उन्हीं पुराने मामलों के मद्देनजर उत्पादों की श्रेणी तय करने का मौका है ताकि अतीत की घटनाएं दोबारा सामने नहीं आएं।’

माना जा रहा था कि इस काम में बहुत देरी हो रही है जबकि इसे पिछले साल ही पूरा कर लेने की संभावना थी। दरें (शून्य, 5%, 12%, 18% और 28%) तय की जा चुकी हैं, लेकिन प्रॉडक्ट कैटगराइजेशन करना अब भी बाकी है। कुछ राज्यों ने भी इस मामले में आवाज उठाई है। केरल इन्हीं में एक है।

प्रॉडक्ट कैटगराइजेशन पर एक हालिया मीटिंग में वहां के वित्त मंत्री टीएम थॉमस आइजक ने राज्यवासियों के लिए बेहद अहम मसला उठाया। बताया जाता है कि आइजक ने नारियल तेल को बालों में लगाने वाला तेल नहीं बल्कि खाद्य तेल की कैटिगरी में रखने की वकालत की। बालों के तेल और खाद्य तेल पर अलग-अलग टैक्स लगने वाले हैं क्योंकि बालों का तेल अनिवार्य वस्तु की श्रेणी में नहीं आता है। लेकिन, नारियल तेल केरल के व्यंजनों के लिए अनिवार्य घटक है। ऐसे में इसे किस श्रेणी में रखा जाएगा, यह राज्यवासियों के लिए उत्सुकता का विषय है।

सूत्रों ने बताया कि जीएसटी कमिटी किसी उत्पाद पर टैक्स तय करने से पहले अतीत के सभी मामलों की छानबीन कर रही है। इसका मतलब है कि कंपनियों ने जो सोचा था कि अब उत्पादों की श्रेणी को लेकर कोई विवाद नहीं बचा है, वह दोबारा शुरू हो गया है।

हालांकि, यह देखना होगा कि क्या कंपनियां उत्पादों की नई श्रेणी को चुनौती देंगी या नहीं। वैसे, एक्सपर्ट्स का मानना है कि चुनौती देना मुस्किल होगा क्योंकि जीएसटी टैक्स वसूली की बिल्कुल नई व्यवस्था होगी और कोर्ट या अपीलीय प्राधिकारों के पुराने आदेशों के लिए कोई जगह नहीं बच पाएगी।

(सचिन दवे, मुंबई)

Source: Economic Times