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उत्तर प्रदेश: बंद हो रहे हैं खादी के कताई केंद्र, थम रही है चरखे की रफ़्तार

आज़मगढ़: खादी और चरखे का रिश्ता आजादी की लड़ाई से भी है लेकिन पुरे देश में जहाँ खादी को बढ़ावा देने के लिए सरकार बड़े प्रयास कर रही है वहीँ बदलते समय के साथ खादी जिले में उपेक्षा की शिकार हो चली है। खादी के प्रचार-प्रसार के लिए खोले गये कताई केन्द्र बन्द हो गये और उसी के साथ बापू की याद दिलाने वाले चरखे भी थम गये। नतीजा कताई, बुनाई और रंगाई कार्य से जुड़े सैकड़ों लोगों की रोजी-रोटी भी छिन गयी। अखिल भारतीय खादी ग्रामोउद्योग द्वारा संचालित चरखा कताई केन्द्रों को पुनर्जीवित करने की भी कोई योजना फिलहाल विभाग के पास नहीं है।

जिले में बीस चरखा कताई केन्द्रों की स्थापना 90 के दशक में की गयी थी। यह केन्द्र दो उत्पत्ति केन्द्रों के अधीन काम करते थे। अतरौलिया स्थित उत्पत्ति केन्द्र से सगड़ी, फूलपुर व बूढऩपुर तहसील क्षेत्रों में 55 गांधी आश्रम व 15 कताई केन्द्र संचालित होते थे। राहुल नगर स्थित उत्पत्ति केन्द्र से सदर और मेंहनगर तहसील क्षेत्रों में 50 गांधी आश्रम और 5 चरखा कताई केन्द्रों का संचालन होता था।

इन केन्द्रों में कताई का काम करने वालों को 30 से 40 रुपये प्रति किलो की दर से मजदूरी मिल जाती थी। इस प्रकार अगर दिन भर में दस किलो रूई की कताई हो गयी तो 3 से 4 सौ रुपये की आमदनी हो जाती थी। फिर उस धागे की बुनाई करने वाले बुनकरों को भी रोजगार अपने ही क्षेत्र में मिल जाता था। धागों की रंगाई के काम में भी सैकड़ों लोगों को रोटी मिल जाया करती थी लेकिन कताई केन्द्रों के बन्द होने के बाद सबकी रोटी छिन गयी।

अब उदाहरण के तौर पर तहबरपुर स्थित न्यू माडल अम्बर चरखा कताई केन्द्र को ही लें तो इसका उद्घाटन 4 जून 1988 को स्वतंत्रता सेनानी एवं सांसद रहे बाबू शिवराम ने की थी। कताई केन्द्र का मकसद यह रहा कि ग्रामीण क्षेत्रों में जहां खादी का प्रचार-प्रसार होगा वहीं क्षेत्रीय बेरोजगारों को अपने ही क्षेत्र में रोजगार भी मिल जायेगा लेकिन वह मकसद पूरा नहीं हो सका। इस केन्द्र पर तीस बड़े चरखे चलते थे तो दर्जनों ग्रामीण अपने घरों पर छोटे चरखों पर कताई करते थे। इस केन्द्र से बने धागों की बुनाई महराजगंज कस्बे के पन्द्रह बुनकर करते थे। रंगाई के काम से भी दर्जनों लोगों को रोजगार मिलता था।

करीब दो एकड़ भूमि पर बने इस केन्द्र की दशा आज जर्जर हो चली है। देखरेख के अभाव में दरवाजे और खिड़कियां तक गायब हो चुकी हैं। पूरा केन्द्र परिसर आवारा पशुओं की शरण स्थली बन गया है।

केन्द्र के व्यवस्थापक ने बताया कि सम्बन्धित अधिकारियों व खादी बोर्ड की उपेक्षा के चलते यह स्थिति आज उत्पन्न हुई है। कान्तिनों, बुनकरों का भुगतान व कच्चे माल की आपूर्ति न होने से केन्द्र बन्द हो गया। इतना ही नहीं दुकान का किराया और खुद का वेतन भी समय से नहीं मिल पा रहा है जबकि खादी बिक्री केन्द्र से आज भी एक सीजन में सात से बारह लाख तक की बिक्री हो जाती है।

Source: Patrika.com