भारत में स्टार्टअप इकोसिस्टम के दायरे में हो रही बढ़ोतरी को देखते हुए चीन के निवेशकों में दिलचस्पी पैदा हुई है. विशेषज्ञों का तो यहां तक कहना है कि मौजूदा रुझान यह दर्शा रहा है कि भारतीय स्टार्टअप्स अब अमेरिका की सिलिकॉन वैली के बजाय चीन की ओर ज्यादा भरोसे से देख रहे हैं.
भारतीय फाउंडर्स और इनवेस्टर्स की हालिया चीन यात्रा के क्या मायने हो सकते हैं, कारोबार की गति को बढ़ाने में इसका क्या योगदान हो सकता है, इससे किस तरह का एक नया माहौल बना सकता है और उद्यमियों में जोखिम लेने की क्षमता कैसे बढ़ सकती है, इन सभी मसलों पर फोकस किया गया है.
बैलेंसिंग एक्ट
जिस इकोसिस्टम के दायरे में एक स्टार्टअप पनपता और आगे बढ़ता है, उसके साथ व्यापक हद तक उसका भाग्य जुड़ा होता है. चीनी और भारतीय अर्थव्यवस्थाओं के बीच आकार में पांच गुना फर्क होने से इसे स्पष्ट तरीके से समझा जा सकता है. इसलिए पब्लिक इंफ्रास्ट्रक्चर और उपभोक्ताओं की क्रयशक्ति के लिहाज से दोनाें देशों के बीच फर्क पड़ता है. भारत में लोकतांत्रिक राजनीतिक व्यवस्था की तुलना में जहां निर्णय लेने के तर्क में फंसना पड़ता है, जिसमें अंगूर खट्टे हैं, वाली प्रतिक्रिया होती है, के मुकाबले एक पक्षीय शासन की पूर्ण शक्ति के लिए चीन की सफलता का श्रेय देना आसान है. लेकिन, चीन की यात्रा के दौरान यह स्पष्ट हो जाता है कि यह उससे भी कहीं ज्यादा है.
आर्थिक सुधारों और विकास से प्रेरित उद्यमिता चीन में बदलाव लाने में एक बड़ी भूमिका निभा रही है और स्टार्टअप को पनपने और उसके फलने-फूलने के लिए अनुकूल माहौल बनाने में इसका योगदान रहा है. वीचैट जैसे उद्यमों की कामयाबी से यह परिलक्षित हुआ, जो चीन में फैल चुका है. हालांकि, यह एक गेम था, लेकिन बाद में इसका इस्तेमाल जरूरत की दशा में नकदी के विकल्प के तौर पर भी किया जाता था.
चीन में मोबाइल भुगतान की सुविधा अब पहले से ज्यादा आसान हो गयी है, लेकिन ‘अलीपे’ और उसके बाद ‘वीचैट पे’ जैसी सुविधाओं के आने के बाद से पारंपरिक बैंकिंग पर खतरा मंडराने लगा है. यहां सरकार एक तरह से मूकदर्शक बनी हुई है और इस तरह से वह इस विघटन को मंजूरी दे रही है.
व्यावहारिक दृष्टिकाेण
इसका मतलब यह नहीं कि सरकार के हाथ बंधे हैं. यह ठीक उस तरह का व्यावहारिक दृष्टिकाेण है, जिस तरह से चीन में बढ़ोतरी हुई है और उद्यमिता उसका एक बड़ा हिस्सा है. यह दर्शाता है कि इसका नियंत्रण है और जब चाहें, तब उसे अपने हित में इस्तेमाल कर सकते हैं.
वैसे, शंघाई-आधारित बिजनेस स्ट्रेटजी कंसल्टेंट एडवर्ड सी का तर्क है कि ये विघटनकारी बदलाव जारी रहेंगे और आनेवाले समय में ये ज्यादा-से-ज्यादा उद्योगों व उद्यमियों को अपनी चपेट में ले सकते हैं. ‘चाइनाज डिसरुप्टर्स’ नामक अपनी किताब में उन्होंने इन तथ्यों का व्यापक रूप से उल्लेख किया है. एमटोन वायरलेस के चेयरमैन विक्टर वांग ने तर्क दिया है कि सरकार द्वारा उद्यमिता को सक्रियता से समर्थन करने से ऐसा माहौल बनाने में सफलता मिली है.
सुमित चक्रवर्ती की एक रिपोर्ट के हवाले से ‘टेक इन एशिया’ में बताया गया है कि भारत के शुरुआती दौर के एक प्रमुख और ज्यादा सक्रिय सीड फंड ब्लूम वेंचर्स के को-फाउंडर और मैनेजिंग पार्टनर कार्तिक रेड्डी भी चीन की यात्रा पर गये दल में शामिल थे.’ उनका कहना है, ‘किसी भी अन्य देश के मुकाबले य हां की नीति ‘विन-विन’ यानी दोतरफा जीत सरीखी प्रतीत होती है.’ चीन के पहले खास इकोनोमिक जोन शेनझेन में कई उद्यमों का दौरा कर चुके रेड्डी कहते हैं, ‘भारत में यह अक्सर स्टेकहोल्डर के बीच विवाद होता है और दूसरों को फायदा.’
कॉरपोरेट्स और स्टार्टअप के बीच का मोलभाव
कार्तिक ने जिन चीजों का उल्लेख किया था, उनमें केवल सरकार और बिजनेस के बीच का ही नहीं, बल्कि कॉरपोरेट्स और स्टार्टअप के बीच का मोलभाव भी शामिल था. भारत के हालात की तुलना करते हुए वे कहते हैं कि स्टार्टअप के लिहाज से चीन में भारत के मुकाबले बेहतर परिस्थितियां हैं. भारत में कॉरपोरेट्स के लिए, चाहे वह ‘एम एंड ए’ हो या इनवेस्टमेंट या वेंडर रिलेशंस, मूल रूप से उनका डीएनए कुछ इस तरह का होता है कि यदि किसी एक की जीत होगी, तो दूसरे की हार तय है.
‘टेक इन एशिया’ के एक अन्य लेखक स्टीवन मिलर्ड ने लिखा है कि चीन भी अपनेआप में एक ऐसे मॉडल के तौर पर उभर रहा है, जैसे सिलिकॉन वैली में स्टार्टअप को पनपने के लिए जरूरी चीजें मुहैया करायी जाती हैं.
विभिन्न स्टेकहोल्डर्स द्वारा दो-दो हाथ किये जाने के बावजूद भारत में एक डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्चर कायम हो रहा है. भले ही इस संबंध में प्राइवेसी और सिक्योरिटी से संबंधित मसलों का समाधान नहीं किया जा सका हो, लेकिन ‘आधार’ नामक एक खास आइडी जेनरेट करने के जरिये बायोमेट्रिक ऑथेंटिकेशन सिस्टम के माध्यम से एक अरब से ज्यादा भारतीयों को रजिस्टर्ड कर दिया गया है.
भारतीय कंपनियों में चीन का निवेश
रिसर्च फर्म ‘ट्रैक्सन’ की एक रिपोर्ट के मुताबिक, वर्ष 2016 में चीन की कंपनियों ने भारतीय कंपनियों में 2.37 अरब डॉलर की रकम का निवेश किया है. चीन की प्रमुख निवेशक कंपनियां इस प्रकार रही हैं :
– टेनसेंट – अलीबाबा – सीट्रिप
पिछले वर्ष के दौरान बड़ा बदलाव यह देखा गया कि विशुद्ध रूप से वित्तीय कंपनियां को ज्यादा तवज्जो दी गयी है. चीनी निवेशक और भारतीय उद्यमियाें ने सीमा-पार नेटवर्किंग सिस्टम विकसित किया है और इस तरह से वे ज्ञान का आदान-प्रदान कर रहे हैं.
चीन और भारत में कारोबारी दशा के लिए समान तथ्य
अमेरिका के मुकाबले कुछ ऐसी चीजें हैं, जो चीन और भारत को ज्यादा नजदीक लाती हैं. इनमें से कुछ चीजें इस प्रकार हैं :
– सांस्कृतिक समानता
– उपभोक्ताओं की खर्च करने की प्रवृत्ति
– आमदनी का स्तर
– तकनीक के जरिये धोखाधड़ी से बचाव का समाधान.
इसके अलावा, यदि आपको यह समझना है कि भारत की सवा अरब से ज्यादा आबादी को कैसे हैंडल करना है, तो इसके लिए भी अमेरिका के बजाय चीन से सीखना ज्यादा बेहतर होगा.
Source: PrabhatKhabar.com