जीडीपी की धीमी वृद्धि के कारण अब अर्थशास्त्री उम्मीद लगा रहे हैं कि अगले हफ्ते रिजर्व बैंक अपनी मौद्रिक समीक्षा बैठक में दरों में कमी कर सकता है। सुस्ती का असर निजी क्षेत्र की गतिविधियों पर भी दिखा। कृषि और सरकारी खर्च को हटा दें तो औद्योगिक और सेवा क्षेत्र का जीवीए चौथी तिमाही में महज 3.8 फीसदी बढ़ा। बीते वित्त वर्ष की पहली तिमाही में यह आंकड़ा 8.4 फीसदी था जबकि नोटबंदी वाली तिमाही में यह 5.9 फीसदी बढ़ा था।
पूरे वर्ष 2016-17 के दौरान अर्थव्यवस्था महज 7.1 फीसदी की दर से बढ़ी जो तीन साल में सबसे कम है। ये आंकड़ा उतना ही है जितना फरवरी में अग्रिम अनुमानों में बताया गया था। हालांकि जीवीए पूरे साल के लिए 6.6 फीसदी बढ़ा, मगर वह भी तीन साल में सबसे कम है और दूसरे अग्रिम अनुमान के 6.7 फीसदी के आंकड़े से नीचे है। अगर कृषि और सरकारी खर्च हटा दें तो जीवीए में बढ़ोतरी 4.8 फीसदी तक धीमी हो गई है जो पहली छमाही में 7.6 फीसदी थी।
इसका मतलब है कि साल की दूसरी छमाही में अर्थव्यवस्था को रफ्तार कृषि और सरकारी खर्च ने दी। तीसरी तिमाही में इसमें 8.2 फीसदी जबकि चौथी तिमाही में 10.2 फीसदी इजाफा हुआ। नोटबंदी के सरकार के कदम ने चौथी तिमाही में निर्माण और वित्तीय सेवा क्षेत्र पर विपरीत असर डाला। निर्माण क्षेत्र 3.7 फीसदी तक गिरा जबकि वित्तीय क्षेत्र, रियल एस्टेट और पेशेवर सेवा क्षेत्र महज 2.2 फीसदी बढ़े। नोटबंदी के कारण तीसरी तिमाही में निर्माण क्षेत्र महज 3.4 फीसदी बढ़ा जो दूसरी तिमाही में 4.3 फीसदी बढ़ा था।
इसी तरह वित्तीय सेवा क्षेत्र तीसरी तिमाही में 3.3 फीसदी बढ़ा जबकि इससे पिछली तिमाही में यह 7 फीसदी बढ़ा था। ईवाई के डी के श्रीवास्तव ने कहा कि नोटबंदी की चोट से उबरने में कम से कम एक तिमाही और लगेगी। लेकिन मुख्य सांख्यिकीविद टीसीए अनंत इस तर्क से सहमत नहीं हैं। उनका कहना है कि नोटबंदी का असर कहीं अधिक जटिल है। (By: ईशान बख्शी और इंदिवजल धस्माना)
Source: Business Standard