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सरकार की स्टार्टअप योजना की धीमी रफ्तार, नई कंपनियों को दिए गए सिर्फ 5.66 करोड़ रुपये

राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) सरकार द्वारा स्टार्टअप इंडिया पहल शुरू किए जाने के बाद नई नवेली कंपनियों को सिर्फ 5.66 करोड़ रुपये ही दिए गए हैं। सरकार ने इस योजना के तहत स्टार्टअप को 10,000 करोड़ रुपये कर्ज देने का वादा किया था।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2015 के स्वतंत्रता दिवस के भाषण में इस कार्यक्रम की घोषणा की थी। इस पहल को 16 जनवरी 2016 को पेश किया गया। इस योजना के माध्यम से देश में स्टार्टअप को बढ़ावा देने और उन्हें मदद का वादा किया गया था।

इस कार्यक्रम का एक अहम हिस्सा 10,000 करोड़ रुपये का कोष बनाया जाना था, जिससे स्टार्टअप को वित्तीय मदद की जानी है। पिछले साल 22 जून को इस कोष का गठन हुआ। इस कोष में पूरा धन 2025 तक डाला जाना है। इसके लिए भारतीय लघु औद्योगिक विकास बैंक (सिडबी) को फंड मैनेजर बनाया गया था।

इस फंड का निवेश भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) में पंजीकृत वैकल्पिक निवेश फंडों (एआईएफ) में किया जाना था। इन एआईएफ को स्टार्टअप में निवेश करना था।

अब तक सिडबी ने 4 निजी निवेश फंडों के लिए सिर्फ 1,315 करोड़ रुपये का कोष बनाया है। इसमें से भी इन चार को सिर्फ 110 करोड़ रुपये की प्रतिबद्धता जताई गई। प्रतिबद्धता जताई गई इस राशि में से इन 4 निवेश फंडों में से एक ने सिर्फ 5.66 करोड़ रुपये स्टार्टअप को दिए। (आरटीआई) के माध्यम यह जानकारी मिली है।

मांगी गई जानकारी सिडबी ने 8 फरवरी को दी।  जिन 4 एआईएफ के लिए कोष बनाया गया था, उनमें काई कैपिटन, ओरियस वेंचर पार्टनर्स फंड-2, साहा ट्रस्ट और किटवेन फंड-3 शामिल हैं।

वेंचर फंड को कुल 300 करोड़ रुपये निर्धारित कोष में से केई कैपिटल के लिए 45 करोड़ रुपये की प्रतिबद्धता जताई गई थी। यह एकमात्र वेंचर फंड है, जिसने वास्तव में स्टार्टअप में धन का निवेश किया। केई कैपिटल ने इस धनराशि में से 5.66 करोड़ रुपये स्टार्टअप में निवेश किया।

आरटीआई के माध्यम से मांगी गई जानकारी में यह साफ नहीं किया गया कि किस स्टार्टअप को यह धनराशि दी गई। केई कैपिटल ने इस सिलसिले में मांगी गई जानकारी पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी।

किटवेन फंड दूसरा निवेश फंड है, जिसे सिडबी की ओर से पहले धन मिला। इसे कर्नाटक राज्य सरकार ने भी समर्थन दिया। यह सूचना तकनीकी क्षेत्र की स्टार्टअप में निवेश करती है। किटवेन को 50 करोड़ रुपये कोष का आवंटन किया गया है, जिसमें से 5 करोड़ रुपये की प्रतिबद्धता सिडबी ने जताई है। तीसरा ओरियस वेंचर्स है, जिसे कोष का बड़ा हिस्सा 900 करोड़ रुपये मिला। इसमें भी सिडबी ने अन्य स्रोतों से शुरुआत में निवेश किया।

900 करोड़ रुपये में से सिडबी ने कंपनी को 50 करोड़ रुपये देने की प्रतिबद्धता जताई है। निवेश फंड ने किसी स्टार्टअप में अब तक कोई निवेश नहीं किया है। इस योजना का अन्य लाभार्थी साहा ट्रस्ट है। महिला केंद्रित इस कोष ने महिला उद्यमियों की स्टार्टअव पहल को बढ़ावा देने का वादा किया है। साहा ट्रस्ट को 65 करोड़ रुपये का कोष दिया गया है, जिसमें 10 करोड़ रुपये की प्रतिबद्धता सिडबी ने जताई है।

सरकार की कार्ययोजना के मुताबिक लाइफ इंश्योरेंस कॉर्पोरेशन (एलआईसी) को फंडों के फंड में साथ में योगदान करना था। लेकिन सिडबी ने बिजनेस स्टैंडर्ड को बताया कि एलआईसी ने अब तक इस कोष में कुछ भी धन नहीं दिया है। सरकार के फंडों के फंड को निजी फंडों में तभी निवेश करने की अनुमति है जब निजी फंड ने पहले ही 50 प्रतिशत पूंजी जुटा ली हो। ऐसी स्थिति में फंडों का फंड शेष राशि का निवेश कर सकता है।

सिडबी की निगरानी में फंडों के फंड के बोर्ड में 6 निजी पेशेवर के अलावा इसके अधिकारी शामिल हैं जो पहले चरण में प्रस्तावों की जांच करते हैं। लेकिन सिडबी बोर्ड के फैसले पर वाणिज्य मंत्रालय की सहमति लेनी होती है। दस्तावेजों से पता चलता है कि सिडबी ने शुरुआत में 6 एआईएफ फंडों के लिए 1,720 करोड़ रुपये कोष की सहमति जताई थी, लेकिन मंत्रालय की सहमति के बाद 6 एआईएफ में से अब सिर्फ 4 के लिए 1,315 करोड़ रुपये की प्रतिबद्धता जताई गई है।

बोर्ड में मोहनदास पई भी शामिल हैं। स्टार्टअप इंडिया फंड की सुस्त रफ्तार के बारे में पूछे जाने पर पई ने  कहा कि फंडों के फंड के ढांचे में इस तरह शुरुआत करना और ऊपर जाना मुश्किल है। उन्होंने दावा कि या कि फंड ने वास्तव में 200 करोड़ रुपये का निवेश किया है, जो 1,000 करोड़ रुपये के निवेश के लिए प्रेरक का काम करेगा।

Source: Business Standard