अब वे चाहते हैं कि टाटा ट्रस्ट्स उन सामाजिक उद्यमों को फंड मुहैया कराने का एक ढांचा तैयार करे, जिनको फिलहाल ग्रांट से ही सपोर्ट किया जा सकता है।
टाटा संस में चैरिटेबल इंस्टीट्यूशंस ग्रुप टाटा ट्रस्ट्स की 66 पर्सेंट हिस्सेदारी है।
टाटा ट्रस्ट्स समाज के लिए फायदेमंद बिजनेस को फंड मुहैया कराने के लिए तीन स्तरीय ढांचा तैयार कर रहे हैं। यह ढांचा टाटा इंडस्ट्रीज के वेंचर्स इनक्यूबेशन की नकल होगा। सोशल बिजनेस को टाटा संस से फंड पाने के लिए इस ढांचे में तय प्रोसेस से गुजरना होगा। इससे पार्टिसिपेट करनेवाले इनवेस्टर्स में डायवर्सिफिकेशन होगा।
टाटा ट्रस्ट्स के इनोवेशन हेड मनोज कुमार कहते हैं, ‘मुझे टाटा की तरफ से एक नया फंड बनाने की जिम्मेदारी दी गई है जो परोपकारी और वेंचर कैपिटल के बीच का हो। इसका आर्किटेक्चर टाटा संस से अलग होगा। यह ट्रस्ट में इनक्यूबेट होनेवाले सामाजिक रूप से प्रासंगिक और फायदेमंद बिजनेस में पैसा लगाएगा।’
फंड सामाजिक रूप से प्रासंगिक कारोबारी आइडिया को ग्रांट देने के लिए आईआईएस, आईआईटी और एमआईटी टाटा ट्रस्ट्स में बने इनोवेशन सेंटर का इस्तेमाल किया जाएगा और यह स्ट्रक्चर की पहली लेयर होगी। जिस आइडिया में कारोबारी विस्तार की क्षमता होगी, उसे फाउंडेशन फॉर इनोवेशन एंड सोशल आंत्रप्रेन्योरशिप (FISE) के हवाले कर दिया जाएगा। पिछले साल कुमार की अगुवाई में बनाया गया FISE स्ट्रक्चर की दूसरी लेयर के तौर पर काम करेगा।
यह फंड, एक्सटर्नल सपोर्ट व्हीकल, स्ट्रक्चर की तीसरी लेयर बनेगी। इस स्ट्रक्चर में ज्यादा सामाजिक बदलाव की क्षमता वाले उद्यम टाटा ट्रस्ट्स की तरफ से बाहरी तौर पर बनाए जा रहे इनवेस्टर ईकोसिस्टम से कनेक्ट होंगे। टाटा ग्रुप ने 80 के दशक में टाटा इंडस्ट्रीज के कारोबारी मकसद में बड़े बदलाव किए थे। इस कवायद का मकसद कंपनी को नए और हाई टेक बिजनेस में ग्रुप की एंट्री की अगुवाई करनेवाला जरिया बनाना था।
टाटा इंडस्ट्रीज ने इसमें इनफॉर्मेशन टेक्नोलॉजी, फाइनेंशियल सर्विसेज और ऑटो कंपोनेंट जैसे सेक्टर्स की कंपनियों को सपोर्ट किया था।
कुमार कहते हैं, ‘ट्रस्ट के चार्टर्स में बताई गई गाइडलाइंस के मुताबिक उनकी तरफ से सिर्फ ग्रांट दिया जा सकता है। ट्रस्ट इक्विटी निवेश नहीं कर सकते। इनवेस्टमेंट व्हीकल के जरिए हम उन स्टार्टअप्स में इक्विटी ले सकेंगे जिनको सोशल सेक्टर स्टेटस के चलते फंड जुटाने में मुश्किल हो रही है।’
(मोहित भल्ला)
Source: Economic Times