नोटबंदी के बाद अर्थव्यवस्था बेहाल है। ऐसे में आम जनता उम्मीद कर रही है कि सरकार बजट में कुछ ऐसे फैसले लेगी, जिससे उनकी मुश्किलें कम होंगी। यहां दूसरे चरण में चार अन्य सेक्टर्स और बजट से उनकी उम्मीदों के बारे में बताया जा रहा है।
कैशलेस इकनॉमी
नकदहीन अर्थव्यवस्था तो नहीं, पर कम से कम नकदी का इस्तेमाल करने वाली अर्थव्यवस्था की तरफ यह बजट किस तरह से लेकर जाता है, यह देखना होगा।
लोग कैशलेस पर सिर्फ इसलिए नहीं जाएंगे कि ऐसा करना राष्ट्रहित में है। लोगों को इसके लिए कुछ अतिरिक्त छूट, डिस्काउंट या सुविधा देनी पड़ेगी।
जैसे ऑनलाइन रिजर्वेशन कराने पर इंश्योरेंस मुफ्त मिल जाता है। ऑनलाइन मुफ्त या सस्ता क्या मिलेगा, कैशलैस होने पर बजट को इस सवाल का उचित जवाब देना पड़ेगा।
कैशलेस की बुनियादी व्यवस्थाएं
नकदहीन व्यवस्था लाने के लिए एक बुनियादी आधारभूत व्यवस्था की जरुरत है। पॉइंट आफ सेल मशीन, टेलीकाम नेटवर्क और खास तौर पर सरकारी बैंकों की इस संबंध में भूमिका अहम होगी। ठोस आर्थिक मुद्दे बजट को देने पड़ेंगे, जिनके चलते इन सारे मसलों पर ठोस कार्रवाई हो सके।
अर्थव्यवस्था की गति
सरकारी आंकड़ों के मुताबिक 2016-17 में आर्थिक विकास दर 7.1 प्रतिशत रहनेवाली है, 2015-16 में यह 7.6 प्रतिशत थी।
अर्थव्यवस्था को नई गति देने की जिम्मेदारी बजट पर भी है। आयकर की सीमा बढ़ाकर लोगों की जेब में कुछ अतिरिक्त रकम डाली जा सकती है।
अभी ढाई लाख रुपए तक की टैक्स छूट इनकम टैक्स के दायरे में नहीं है। अनुमान लगाए जा रहे हैं कि चार लाख रुपए तक की आय को कर के दायरे से बाहर कर दिया जाएगा।
पर ऐसा करना आसान नहीं है, क्योंकि भारत में पहले ही करदाताओं की संख्या कुल जनसंख्या के हिसाब से कम है।
127 करोड़ की जनसंख्या में कुल चार करोड़ लोग भी आयकर नहीं देते। यह बात ठीक है कि कर सीमा बढ़ाने से लोगों की जेब में कुछ रकम बच जाएगी, जिससे मांग बढ़ेगी।
इससे अर्थव्यवस्था की गति बढ़ा सकती है पर पहले ही कम आय करदाताओं की संख्या में कमी करना पूरी अर्थव्यवस्था के लिहाज से ठीक होगा क्या, इस सवाल से भी वित्तमंत्री को जूझना होगा।
भंडार भरपूर
ऐसा कम होता है, जब अर्थव्यवस्था में गति ना दिखायी पड़ रही हो और कर संग्रह गतिवान दिख रहा हो. आम तौर पर वित्तमंत्री संसाधनों के संग्रह को लेकर संकोच दिखाते हैं ताकि उनके सामने ज्यादा मांग ना पेश कर दी जाए।
पर हाल में केंद्रीय वित्तमंत्री अरुण जेटली ने बहुत आत्मविश्वास से बताया कि भंडार भरपूर हैं, कोई दिक्कत नहीं है। कर संग्रह में तेज गति है, जो आशंकाएं व्यक्त की गई थीं, वो सब गलत थीं।
वित्तमंत्री ने बताया है कि 2016-17 में कुल 16 लाख 30 हजार करोड़ रुपए मिलने का अंदाजा है, वास्तविक कर-संग्रह इससे ज्यादा ही होगा यानी संसाधनों की कोई दिक्कत नहीं है।
नोटबंदी के बावजूद कर संग्रह की रफ्तार ना सिर्फ बनी हुई है, बल्कि तेज ही हो गई है। इस स्थिति का फायदा अर्थव्यवस्था के उस तबके को जरुर मिलना चाहिए, जो नोटबंदी के दौरान कई परेशानियों से गुजरा है, खास कर छोटे कारोबारी।
Source: Firstpost