जीएसटी परिषद के नौवें बैठक में राज्यों और केंद्र के बीच एक राय नहीं बन पायी है। सरकार की सारी कोशिशें राज्यों के 1.5 करोड़ रुपये तक का सालाना कारोबार करने वाली इकाईयों पर अपने अधिकार की मांग को खारिज नहीं कर पायी है। सरकार राज्यों को फिलहाल इस का अधिकार देने को तैयार नहीं है, क्योकि उसको लगता है कि राज्यों के पास इस टैक्स को वसूलने का अनुभव व योग्यता नहीं है।
काउंसिल अध्यक्ष वित्त मंत्री अरुण जेटली जीएसटी को 1 अप्रैल से लागू होने वाले बिल में अप्रत्यक्ष करों को शामिल करने व लंबित मुद्दों को हल करने के लिए आशा व्यक्त की थी। लेकिन बैठक में इसका कोई हल न निकलने के कारण लंबित बिल का 1 अप्रैल से लागू होना मुश्किल में है। फिलहाल बैठक की अगली तारीख अभी तय नहीं हुयी है।
तारीख पर अनिश्चितता इस साल के बजट के लिए एक बड़ी समस्या बनी हुयी है। सरकार बजट में उत्पाद शुल्क और सेवा कर को शामिल नहीं करना चाहती थी। क्योंकि उसे 1 अप्रैल, 2017 से जीएसटी लागू होने की उम्मीद थी।
बजट की तरीक नजदीक आने से अब सरकार के पास मात्र कुछ विकल्प ही बचे हुए हैं। जिसमें सरकार मौजूदा करों के आधार पर राजस्व का अनुमान तैयार कर सकती है और वर्तमान व्यवस्था को जारी रख सकती है।
अप्रत्यक्ष करों को बदले बिना छूट और अप्रत्यक्ष कर ढांचे में अन्य विकृतियों को हटाया जा सकता है। सरकार बजट में उत्पाद शुल्क और सेवा कर को लागू कर संशोधन अनुमान के अनुसार जीएसटी परिषद की नई दरें शामिल कर सकती हैं।
सरकार जीएसटी मसौदा कानून के तहत प्रस्तावित मानक दरों के हिसाब से अप्रत्यक्ष करों में परिवर्तन कर सकती हैं।