अमेरिका में नौकरियों के लिए नये मौके पैदा करने में भले ही इसका जो भी असर हो, लेकिन इस फैसले से इस बात की आशंका बढ़ गयी है कि भारत सरकार की स्टार्टअप इंडिया मुहिम की रफ्तार धीमी हो सकती है.
दुनियाभर की कंपनियों व स्टार्टअप के लिए अमेरिका एक आकर्षक बाजार है. खासकर उनके लिए जो ‘फॉर्चून 500’ कंपनियों की सूची में शामिल होना चाहते हैं. द्रुव, फ्रेशडेस्क, पोस्टमैन, जोहो आदि ऑलरेडी वहां रजिस्टर्ड हो चुकी हैं. मेकमाइट्रिप, माइंडट्री, इनफोसिस, विप्रो और कॉग्निजेंट जैसी कंपनियों ने 1990 के दशक में अमेरिका से अपने संबंध कायम किये थे, ताकि अपने क्लाइंट से ज्यादा-से-ज्यादा नजदीकी से जुड़ सकें और न्यूयॉर्क स्टॉक एक्सचेंज या नैसडेक सरीखे कैपिटल मार्केट में अपनी पहचान बना सकें.
भारत के लिए चिंता का विषय
अमेरिका में कॉरपोरेट टैक्स के 15 फीसदी हो जाने की दशा में भारत के लिए चिंता का विषय यह होगा कि इससे प्रधानमंत्री की स्टार्टअप इंडिया मुहिम को पलीता लग सकता है, क्योंकि अमेरिका की उदारता से नये जेनरेशन के भारतीय टेक स्टार्टअप को वहां जाने से रोकना मुश्किल हो जायेगा.
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की योजना यह भी है कि बहुराष्ट्रीय कंपनियों द्वारा लाये लाने वाले मुनाफे पर टैक्स में 35 फीसदी से कटौती करते हुए उसे 10 फीसदी तक लाया जाये. ‘मनी कंट्रोल’ की एक रिपोर्ट के मुताबिक, इससे पेटीएम व फ्लिपकार्ट को अपना टैक्स दायित्व 25 फीसदी तक कटौती कर पाने में मदद मिल पायेगी. इससे विदेशी निवेशकों से ऐसी कंपनियों को धन मुहैया करना आसान हो जाता है. इसके अलावा, भारत में ऐसी कई कंपनियां हैं, जो लगातार पिछले तीन वर्षों से मुनाफा अर्जित नहीं कर पायी हैं.
किसी भारतीय कंपनियों के लिए अमेरिका में इनकॉरेपोरेट करना बहुत मुश्किल नहीं है. अनेक कंपनियां अमेरिका में पहले से ही सूचीबद्ध हैं.
मॉरीशस की तरह अमेरिका में होगी आसानी
अमेरिका में प्रस्तावित नयी टैक्स दर आगामी एक जनवरी से प्रभावी हो सकती है. इस तरह से अमेरिका भी मॉरीशस की तरह आकर्षक हो जायेगा, जहां व्यक्तिगत और कॉरपोरेट टैक्स एकसमान रूप से 15 फीसदी है. भारत में व्यापक मात्रा में निवेश करनेवाली एक्सेल, बीसेमर, क्लियरस्टोन, मैट्रिक्स, नेक्सस वेंचर पार्टनर्स, सिकोइया कैपिटल और नॉरवेस्ट वेंचर पार्टनर जैसे वीसी फर्म्स मॉरीशस में ही रजिस्टर्ड हैं.
अमेरिका के इस कदम से भारत व चीन जैसे एशियाई देशों की टेक कंपनियों के लिए निवेश हासिल कर पाना पहले से मुश्किल हो जायेगा.
Source: Prabhat Khabar