दरअसल मौजूदा व्यवस्था इन दोनों की भरपाई नहीं कर पा रही। यह सोच समझदारी भरी है लेकिन इसे ज्यादा से ज्यादा एक तदर्थ नीति ही माना जा सकता है। इसके क्रियान्वयन के कुछ पहलू भी चिंतित करने वाले हैं। सरकार ने इस दिशा में जो कदम उठाए हैं उनमें एक अहम घटक स्टार्ट अप इंडिया का भी रहा है।
इसका उद्देश्य था नए उद्यमियों को बढ़ावा देना। स्टार्ट अप इंडिया पहल के लिए 10,000 करोड़ रुपये का फंडों का फंड 2025 तक बनाने की बात कही गई थी। इसका प्रबंधन भारतीय लघु उद्योग विकास बोर्ड (सिडबी) के हाथ में सौंपा गया।
परंतु एक खबर के मुताबिक इस सिलसिले में अब तक कोई खास जमीनी पहल नहीं हो सकी है। माना जाता है कि इसके लिए 1,315 करोड़ रुपये का फंड बना जिसमें केवल 110 करोड़ रुपये की ही वास्तविक प्रतिबद्धता जताई गई। जबकि केवल 5.66 करोड़ रुपये की राशि ही वितरित की गई। यह बात ध्यान देने लायक है कि इस फंड की घोषणा वर्ष 2015-16 के बजट में की गई थी यानी इसे ढाई साल हो चुके हैं।
यह धीमी गति सरकारी नीति के लिहाज से कतई अस्वाभाविक नहीं है लेकिन तेजी से बदलते स्टार्टअप जगत के लिए यह काफी धीमी है। वास्तव में इससे एक बात और रेखांकित होती है और वह यह कि देश की नौकरशाही की धीमी प्रक्रिया और गति के साथ नए जमाने की उद्यमिता को मदद दे पाना बहुत मुश्किल है। ऐसे में इसकी मदद से देश की आर्थिक तस्वीर बदलना और रोजगार के अवसर पैदा करना भी उतना ही कठिन है।
ऐसे में एक मूलभूत प्रश्न पुन: पूछा जाना चाहिए कि आखिर सरकार स्टार्टअप के चयन और उनको बढ़ावा देने के काम में शामिल ही क्यों हो रही है? जाहिर तौर पर यह सरकार के दायरे की बात नहीं है। हां, उसे एक मददगार माहौल जरूर तैयार करना चाहिए लेकिन उसका मतलब है लालफीताशाही कम करना और नौकरशाही का हस्तक्षेप समाप्त करना। इसके साथ ही बुनियादी, डिजिटल और भौतिक ढांचा तैयार करना चाहिए ताकि दुनिया भर के संभावित स्टार्टअप संस्थापक मिल सकें।
इसके बजाय सरकार फंड जुटाने वाली की भूमिका निभाकर नई फर्म के बीच ऐसी गतिविधि को बढ़ावा दे रही है जहां संरक्षण और मदद के अवसर उत्पन्न हो रहे हैं। यह खतरनाक बात है। इससे देश के स्टार्टअप जगत की क्षमता कमजोर पड़ सकती है।
सरकार अगर स्टार्टअप की फंडिंग जारी रखती है तो इससे अन्य तरह की समस्याएं देखने को मिल सकती हैं। अधिकारी पहले ही कह चुके हैं भारतीय जीवन बीमा निगम को स्टार्टअप फंडिंग की अपनी प्रतिबद्घता बढ़ानी चाहिए। क्या देश की बचत का ऐसा निवेश उचित है? क्या यह एलआईसी का काम है? क्या उसे अधिक स्थिर निवेश की ओर ध्यान नहीं देना चाहिए? सरकार को स्टार्ट अप इंडिया की धीमी प्रगति के मद्देनजर इन सारी चीजों पर पुनर्विचार करना चाहिए।
स्टार्टअप की फंडिंग के लिए सरकार की मदद चाहने वाली कोई भी व्यवस्था उन्हीं समस्याओं से दोचार होगी जो कहीं और निजी क्षेत्र को सरकारी फंडिंग में सामने आती हैं। मसलन विकृत पूंजीवाद, गलत आवंटन और देरी। सरकार को यह याद रखना चाहिए कि छोटी कंपनियों के लिए कारोबारी सुगमता बढ़ाना कहीं अधिक बेहतर मदद होगी। इसमें निजी पूंजी तक उनकी पहुंच को आसान बनाना और सरकारी क्षेत्र की वित्तीय मदद को कम करना शामिल हैं।
Source: The Business Standard