ई-कॉमर्स फाउंडेशन की ग्लोबल बिजनेस टु कंज्यूमर्स (बी2सी) ई-कॉमर्स रिपोर्ट 2016 के अनुसार साल 2015 में बी2सी ई-कॉमर्स बिक्री में सबसे ज्यादा हिस्सा चीन का था, इसके बाद अमेरिका और फिर ब्रिटेन का नंबर था। विकसित देशों में ऑनलाइन खुदरा कारोबार एक आम बात हो चुकी है और वहां के कुल खुदरा लेन-देन में इसका 10 से 13 फीसदी हिस्सा होता है।
भारत से बी2सी ई–कॉमर्स निर्यात सालाना 26 अरब डॉलर तक पहुंच सकता है– फिक्की सीएमएसएमई-आईआईएफटी रिपोर्ट
भारतीय सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम (एमएसएमई) सेक्टर, मौजूदा और संभावित स्टार्टअप निर्यात इकाइयों के लिए एक सुस्पष्ट मौका है कि वे मार्केट प्लेस के दिग्गज खिलाड़ियों जैसे ईबे, अमेजॉन और अलीबाबा आदि के जरिए तेजी से बढ़ते बी2सी ई-कॉमर्स के एक हिस्से पर अपना अधिकार कर सकें।
हालांकि, भारत में बी2सी ई-कॉमर्स बिक्री 25.5 अरब डॉलर की है, जिससे दुनिया में इसका नौवां स्थान है और इसके बाद दसवें स्थान पर रूस है, लेकिन आश्चर्यजनक बात यह है कि भारत के कुल खुदरा कारोबार में भारतीय ऑनलाइन रिटेल का स्थान एक फीसदी से भी कम है। इसकी झलक इस बात से भी मिलती है कि भारतीय एमएसएमई के बीच ई-कॉमर्स (बी2सी) के द्वारा सीमा पार व्यापार (सीबीटी) बहुत कम होता है और यह अभी अपरिपक्व अवस्था में ही है।
एमएसएमई उत्पादों के द्वारा निर्यात की कुल संभावना करीब 302 अरब डॉलर की है और इसमें 93 उत्पाद श्रेणियों के उत्पाद 159 देशों को निर्यात किए जाते हैं। भारत में कई ऐसे समूह (क्लस्टर) हैं जहां से एमएसएमई उत्पादों को उत्तर अमेरिका (यूएसए), यूरोप (ब्रिटेन, जर्मनी, इटली और फ्रांस), ऑस्ट्रेलिया और दक्षिण पूर्व एशियाई देशों (थाइलैंड, सिंगापुर, फिलीपींस और मलेशिया) को निर्यात किए जा सकते हैं। लेकिन पेट्रोलियम, मशीनरी, लोहा एवं इस्पात, आदि उत्पादों को बी2सी ई-कॉमर्स निर्यात में शामिल नहीं किया जा सकता, इसलिए बी2सी ई-कॉमर्स निर्यात के द्वारा केवल 52 अरब डॉलर मूल्य के खुदरा निर्यात ही किए जा सकते हैं, जिनमें रत्न एवं आभूषण, तैयार चमड़े के सामान, हथकरघा उत्पाद, हस्तशिल्प, ऑटो एसेसरीज आदि जैसे केवल 20 उत्पाद मद शामिल होते हैं।
ऐसा दिखता है कि भारत ई-कॉमर्स अवसरों का पूरा लाभ नहीं उठा रहा है। इंटरनेट इस्तेमाल करने वालों की बढ़ती संख्या, कारोबार से उपभोक्ता (बी2सी) तक वस्तुओं एवं सेवाओं की तेजी सी बढ़ती खरीद एवं बिक्री की वजह से ऑनलाइन अंतरराष्ट्रीय व्यापार काफी फल-फूल रहा है। यह ऐसी चीज है जिसका एमएसएमई को सीधा फायदा मिल सकता है। इसलिए भारत से ई-कॉमर्स निर्यात की स्थिति, चुनौतियों और अवसरों को समझने की सख्त जरूरत है, जो कि इस बात पर निर्भर करता है कि भारतीय एमएसएमई कितने तैयार हैं और भारत से ई-कॉमर्स के द्वारा होने वाले खुदरा सीमा पार व्यापार (सीबीटी) की क्या सीमाएं हैं।
आज जारी किये गए फिक्की सीएमएसएमई-आईआईएफटी रिपोर्ट से पता चलता है कि ऑनलाइन तरीके से भारतीय निर्यात के लिए विशाल संभावनाएं हैं, जिसका कि अभी प्रेरक नीतिगत माहौल न होने की वजह से पूरा दोहन नहीं किया जा रहा। अध्ययन में इस तथ्य को स्वीकार किया गया है कि ऑफलाइन से ऑनलाइन निर्यात के इस आमूल बदलाव से न केवल भारतीय नीति नियंताओं के लिए बल्कि एमएसएमई के लिए भी आगे चुनौती खड़ी होगी। इसलिए अध्ययन में भारत सरकार के लिए सुझावों की पूरी सूची दी गई है कि एक तरफ, भारत की विदेश व्यापार नीति (एफटीपी 15-20) के तहत मौजूदा भारत से व्यापारिक निर्यात योजना (एमईआईएस) नीति में क्या बदलाव किए जाएं और भारतीय एमएसएमई को ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म की तरफ जाने को प्रेरित करने के लिए, जिसमें दूसरों के लिए भी अच्छा मुनाफा सुनिश्चित हो, क्या रणनीति अपनाई जाए।
अध्ययन में संरचित प्रश्नावली और उसके बाद विस्तृत द्वितीयक अनुसंधान के द्वारा बड़े एमएसएमई समूहों में गहन प्राथमिक सर्वेक्षण किया गया। प्राथमिक सर्वेक्षण में ऐसी चार आंतरिक विसंगतियों का पता चला जो कि सूचना एवं संचार तकनीक (आईसीटी) के बुनियादी ढांचे और समूचे एमएसएमई सेक्टर के भागीदारों जैसे परिधान, चमड़ा, हस्तशिल्प, रत्न एवं आभूषण आदि में ई-पेमेंट और लॉजिस्टिक्स से जुड़े हैं। अन्य समस्याओं में शामिल हैं-निर्यात ऑर्डर को पूरा कर पाने के लिए पर्याप्त आपूर्ति क्षमता का न होना, अंतरराष्ट्रीय गुणवत्ता मानक की आपूर्ति न होना, कमजोर लॉजिस्टिक्स, उत्पादों का अंतरराष्ट्रीय बाजार के लिए उपयुक्त न होना और कमजोर बुनियादी ढांचा। प्रतिभागियों ने खराब आईसीटी, लो बैंडविड्थ, नेटवर्क की स्पीड और विश्वसनीयता, और ग्रामीण इलाकों में बिजली की कटौती जैसी समस्याओ के बारे में भी बताया जिनसे और अवरोध खड़े होते हैं।
तकनीकी जटिलता के बारे में अवधारणा के मसले, ऑफलाइन वसूली तेजी से होना आदि कई कारण भारतीय एमएसएमई को व्यापार के परंपरागत तरीकों से चिपके रहने को प्रेरित करते हैं। इसके अलावा कुशल कर्मियों की उपलब्धता की कमी, निजता और सुरक्षा संबंधी चिंताएं और वित्त की अनुपलब्धता ऐेसे कुछ अवरोध हैं जो भारतीय एमएसएमई को ई-कॉमर्स की राह पर पर रुख करने से रोक रहे हैं। इन विसंगतियों की वजह से एमएसएमई ई-कॉमर्स सीबीटी खुदरा बाजार से दूरी बनाए हुए हैं, जिससे तमाम संभावनाएं रखने के बावजूद आखिरकार वे विदेशी खरीदारों तक नहीं पहुंच पाते।
बाहरी मोर्चे की बात करें तो ईबे, अमेजॉन और अलीबाबा जैसे वैश्विक मंच एमएसएमई से संपर्क कर रहे हैं कि वे अपने उत्पादों को वैश्विक बाजारों में पहुंचाएं, अपने संबंधित प्लेटफॉर्म पर उनको सूची में शामिल करने जैसी मदद से, लेकिन नीतिगत मसलों से जुड़ी ऐसी कई विसंगतियां हैं जिनकी वजह से ई-कॉमर्स के द्वारा एमएसएमई निर्यात को तेजी नहीं मिल पा रही।
इस बात की तत्काल जरूरत है कि सरकार ई-कॉमर्स निर्यात को एक उद्योग की मान्यता दे और तमाम नियामक बाधाओं को दूर करने के लिए काम करे, जैसे एफटीपी नीति की समीक्षा, कुछ निश्चित श्रेणियों के मामले में उसकी सीमाओं और सीमित राशि (जैसे रत्न एवं आभूषण के मामले में) के लिहाज से, सीमा शुल्क संबंधी प्रक्रियाओं को आसान बनाए और निर्यातकों को ड्यूटी ड्राबैक क्लेम करने की इजाजत दे।
कई चुनौतियों का तत्काल समाधान करने की जरूरत है, जैसे-वस्तुओं की वापसी में सीमा शुल्क लगाया जाना, वैल्यू एडेड सेवाओं (वैट) या सर्विस टैक्स की वापसी न होना, सीएन-22 फॉर्म में कॉमर्शियल शिपमेंट के लिए प्रावधान का अभाव, मौजूदा कोरियर शिपिंग बिल में कम मूल्य के सिंगल आइटम शिपमेंट के लिए कोई सपोर्ट न होना आदि।
इसलिए यह अध्ययन भारतीय एमएसएमई की वैश्विक पहुंच को बढ़ावा देने और ‘मेड इन इंडिया’ उत्पादों की निर्यात प्रतिस्पर्धात्मकता बढ़ाने के लिए एक पहल है।
भारतीय उत्पादों की ऑनलाइन बिक्री को आसान बनाकर “मेक इन इंडिया’’ और “डिजिटल इंडिया’´के एकीकरण के बारे में नीतिगत सुझावों से, भारतीय एमएसएमई बाजार अनुसंधान पर खर्च किए बिना नए भौगोलिक क्षेत्रों तक पहुंच बनाने और विविध बाजारों का फायदा उठाने में सक्षम होंगे। नीतिगत फोकस में इस बुनियादी बदलाव से एक नई कारोबारी दृष्टि तैयार होती है, क्योंकि इससे ई-कॉमर्स (बी2सी) के द्वारा सीबीटी मौजूदा 50 करोड़ डॉलर से बढ़कर साल 2020 तक दो अरब डॉलर तक पहुंच जाएगा, जो कि भारत से निर्यात किए जा सकने वाले कुल दोहन कर सकने योग्य खुदरा कारोबार का करीब 10 फीसदी होगा।