स्टार्टअप को बड़े पैमाने पर बढ़ावा देने के लिए श्रम कानून के नियमों को आसान बनाने के उद्देश्य से सरकार ने यह कदम उठाया है।
कानून में, कांट्रेक्ट लेबर एक्ट 1970, द बिल्डिंग एण्ड़ अदर कंस्ट्रक्शन वर्कर एक्ट 1996, द इंटर स्टेट माईग्रांट वर्कमेन एक्ट 1979 और द पेमेंट आफ ग्रेच्युटी एक्ट 1972 शामिल हैं।
नए नियम लगभग पांच साल पहले रजिस्टर हुयी स्टार्टअप जिनका सलाना टर्न ओवर 25 करोड़ रुपये से कम है, के लिए ही लागू होंगे।
अधिकारियों का कहना है कि लगभग 98,000 से अधिक स्टार्टअप्स इस योजना के तहत लाभ प्राप्त करने के लिए योग्य हैं। पहले वर्ष में स्टार्टअप को लेबर लॅा के नियमों से मुक्त रखा जाएगा। दूसरे व तीसरे साल में लिखित शिकायत रिसीव होने का बाद ही निरीक्षण किया जाएगा। हालाँकि खतरनाक व्यवसायों में शामिल स्टार्टअप्स के लिए यह नियम लागू नहीं होगा।
इसके अलावा जिन स्टार्टअप द्वारा छूट का लाभ उठाने के लिए श्रम कानून का उल्लंघन करते पाया जाता हैं तो उनको कार्रवाई का सामना करना पड़ेगा और मिलने वाली छूट भी उनसे वापस ले ली जाएगी।
सरकार द्वारा बदले हुए नियमों की घोषणाओं के शीघ्र लागू होने की उम्मीद है।
ट्रेड यूनियनों का कहना है कि वह कानून में लाये जा रहे नवीनतम परिवर्तनों से नाखुश हैं, क्योंकि नए नियमों से मजदूरों और कार्यकर्ताओं के अधिकारों का हनन होगा।
वहीँ हिंदू मजदूर सभा का कहना है कि 90 फासदी से अधिक मजदूर असंगठित क्षेत्र से आते हैं। जो की लेबर लॅा के संरक्षण से वंचित हैं।