इससे सबसे ज्यादा नुकसान उन छोटे जूलरों को हो सकता है, जो सोना खरीदकर गहने बनवाते हैं। जूलर्स का का कहना है कि ऐसा हुआ तो इंडस्ट्री में एक्साइज विरोध से भी बड़ा आंदोलन हो सकता है।
दिल्ली बुलियन जूलर्स असोसिएशन के प्रेजिडेंट श्रीकृष्ण गोयल ने बताया कि मेकिंग चार्ज पर 18 पर्सेंट जीएसटी की बात सुनने में आ रही है, लेकिन सरकार ऐसा नहीं कर सकती। इंडस्ट्री अब तक सोने पर अधिकतम 2 पर्सेंट तक टैक्स की सिफारिश करती रही है क्योंकि फिलहाल 1 पर्सेंट एक्साइज और लगभग इतने ही वैट के साथ 2 पर्सेंट टैक्स ही लगता है। चूंकि एक्साइज मेकिंग पर ही लगती है, ऐसे में इस पर 18 पर्सेंट टैक्स का विरोध होगा।
फेडरेशन ऑफ नोएडा जूलर्स असोसिएशन के चेयरमैन एस के जैन ने कहा कि अगर मेकिंग चार्ज पर 18 पर्सेंट टैक्स लगा तो अपनी मैन्युफैक्चरिंग यूनिट वाले जूलर्स को तो कोई नुकसान नहीं होगा, लेकिन बाहर से गहने बनवाने वाले लाखों जूलर्स सड़कों पर आ जाएंगे।
उन्होंने कहा, ‘मैं जो सोना खरीदूंगा, उस पर दिया गया 2 पर्सेंट जीएसटी तो ग्राहक से वसूल लूंगा, लेकिन मेकिंग चार्ज पर 18 पर्सेंट जीएसटी का क्या होगा। 15 पर्सेंट की मेकिंग कॉस्ट के बाद 18 पर्सेंट का अतिरिक्त बोझ ग्राहक पर भी नहीं डाला जा सकता।’
ऑल इंडिया जेम्स एंड जूलर्स ट्रेड फेडरेशन के पूर्व चेयरमैन बच्छराज बमालवा ने कहा कि जीएसटी में 2 पर्सेंट से ज्यादा रेट इंडस्ट्री अफोर्ड नहीं कर सकती। एक साल पहले तक जूलर्स को सिर्फ स्थानीय सेल्स टैक्स (वैट) देना होता था, लेकिन पिछले साल से 1 पर्सेंट एक्साइज ड्यूटी भी दे रहे हैं।
उन्होंने कहा कि इंपोर्ट पर स्थिति अभी साफ नहीं है। कुल मिलाकर जीएसटी का बोझ मौजूदा करों से ज्यादा नहीं होना चाहिए।
मेकिंग चार्ज को सर्विस मानकर जीएसटी लगाने से लाखों की तादाद में कारीगर भी जीएसटी के दायरे आ जाएंगे, क्योंकि बेशकीमती धातु के काम में छोटे से छोटा कारीगर हाई टर्नओवर में आ जाएगा।
सरकार के साथ हालिया बैठकों में शामिल रहे जूलर्स को भी अभी यह भरोसा नहीं है कि सरकार गोल्ड की बिक्री पर 2 पर्सेंट ही टैक्स तय करेगी। सरकारी स्तरों से कम से कम 4 पर्सेंट और यहां तक कि 6 पर्सेंट टैक्स के संकेत मिल रहे हैं।
Source: Economic Times