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Success Story: खेती-किसानी जैसे पुरुष प्रधान व्यवसाय में लहराया सफ़लता का झंडा, हज़ारों को दिया रोजगार

सपना देखना है तो ऐसा देखो जिसमें अनेकों मुस्कान हों, अपने घर की छत तो सब बनाते हैं पर दूसरों के आंसूओं को आसरा देना हर किसी के बस की बात नहीं।

लेकिन उत्तराखण्ड़ के चमोली जिले से 25 किलोमीटर दूर छोटे से गांव कोट कंडारा की दिव्या रावत ने कुछ ऐसे ही काम किये और बहुत लोगों को रांह दिखाई व सहारा दिया। उन्होंने वो काम अपनाया जिसको महिलायें तो क्या आजकल पुरुष भी करने में हिचकिचाते हैं। अगर हम उत्तराखण्ड़ को प्राकृतिक खूबसूरती का भंडार कहते है तो वहीं दिव्या को इस प्रदेश की उज्जवल प्रतिभा कहना गलत नहीं होगा।

दिव्या के बारे में मैं अपने इस लेख में जितना लिखूं शब्द कम ही होंगे। दिव्या से बात करने के बाद मेरे अंदर एक अजीब सी खुशी थी। शायद दिव्या के अंदर की चमक ने मुझे अपने अंदर कहीं गुम कर लिया था।

कैसे आया आईडिया और शुरू की कंपनी

एमिटी यूनिवर्सिटी से पढ़ायी करने के बाद दिव्या ने दिल्ली में ही सोशल वर्क में मास्टर डिग्री ली और फिर एक सामाजिक संस्था शक्ति वाहिनी आर्गेनाईजेशन के साथ काम करने लगीं और पूरी तरह से समाज सेवा में जुट गयीं। इस दौरान दिव्या ने उत्तराखण्ड़ के लोगों को मात्र 5 और 6 हजार रूपये पर ढाबों में बर्तन धोते व छोटे-मोटे काम करते देखा।

फिर क्या दिव्या ने अपने घर उत्तराखण्ड़ जाकर राज्य के पलायन को कम करने के लिए रोजगार पैदा करने का निर्णय लिया। अपनी इसी मंजिल को पाने के लिए दिव्या ने आगे बढ़ते हुए उत्तराखण्ड़ की मंडियों का दौरा किया और सब्जियों के दाम पूछे।

दिव्या कहती हैं कि जब मैं सब्जियों के मूल्यों का जायजा ले रही थी तब मैंने देखा कि जहाँ सारी सब्जियों के दाम 10, 20 व ज्यादा से ज्यादा 50 रुपये प्रति किलो थे, वहीं मशरुम का सबसे कम मूल्य भी 100 रुपये प्रति किलो था। जिसके बाद मैंने मशरुम की खेती करने का फैसला लिया और तीन लाख रुपये के साथ 2012 में सौम्या फूड प्राइवेट लिमिटेड कंपनी की नींव रखी।

सफ़लता की ओर बढ़ते क़दम

दिव्या से बात करने के दौरान मैंने उनके अंदर तीन रुप देखे एक किसान, समाज सेविका और अंत्रेप्रिनर यानी उद्यमी। दिव्या अपनी फर्म में वातावऱण के अनुकूल मशरुम उगाती हैं। सर्दियों में बटन, मिड सीजन में ओएस्टर और गर्मियों में मिल्की मशरूम का उत्पादन किया जाता है। एक मशरुम बैग की कीमत 50 से 60 रुपये होती है और मुनाफा इसका दुगुना और तिगुना।

दिव्या की बदौलत लोग 5 हज़ार से 20 हजार रुपये की कमाई करते हैं और उन्हें पहाड़ छोड़कर पलायन नहीं करना पड़ता है। दिव्या कामयाबी के रास्ते पर इस गति से बढ़ी कि फिर पीछे मुड़कर नहीं देखा। यही वजह है कि आज मशरुम गर्ल के नाम से पूरा देश दिव्या को जानता है।

सफ़र में मुश्किलें आयीं, पर डटकर सामना किया

वह बताती हैं कि सफर में चैलेंज बहुत थे सबसे पहला तो ये कि मशरुम को उगाकर उसे आर्थिकी में कैसे बदला जाए और दूसरा लोगों की मानसिकता को बदलना क्योंकि हमने इतनी आपदाओं को झेला है कि अब ये दिमागी रुप से ज्यादा हो गई है।

फिर हल्की मुस्कान के साथ दिव्या कहती हैं कि सब कुछ पॅाजिटिव होता तो आप ना मुझसे बात कर रही होती और ना ही आर्टिकल लिख रही होती। इस पर मैं दिव्या से लेख के जरिए कहना चाहूंगी कि यह मेरा सौभाग्य है कि आपने मुझे अपना कीमती समय दिया।

अगला विज़न

दिव्या का आगामी सफर सौम्या फूड के साथ क्या होगा, इस सवाल के जबाव में दिव्या कहती हैं कि उत्तराखण्ड़ में मशरुम की अब तक 53 प्रोडक्शन यूनिट्स लग चुकी हैं। इस संख्या को बढ़ाकर 500 करना है और उत्तराखण्ड को कैपिटल आफ मशरुम का खिताब दिलाना है। दिव्या की यूनिट का रोज का प्रोडेक्शन 300 से 350 किलो है। जिसे वह एक से डेढ़ टन रोजाना बनाना चाहती है।

राष्ट्रपति ने किया सम्मानित

दिव्या को वीमेन डे यानि 8 मार्च को राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी द्वारा नारी शक्ति 2016 पुरस्कार से नवाजा गया है। दिव्या कहती हैं कि यह अवार्ड उनके लिए बहुत खास है क्योंकि इसने उनकी जिम्मेदारियों और उत्साह को और बढ़ा दिया है। इससे पहले उत्तराखंड सरकार भी उन्हें सम्मानित कर चुकी है।

मशरूम की खेती के साथ अब तक का सफ़र

अपने अब तक के सफर को शानदार व रोचक बताते हुए दिव्या कहती हैं कि इस पूरे सफर के दौरान एक ऐसा भी पल आया जो मेरे जीवन का सबसे यादगार लम्हा बन गया। वो था केदारनाथ में मेरा मशरुम यूनिट लगाना। जब मैं यूनिट लगा रही थी तभी अचानक बारिश आ गयी और मैं सतब्ध सी हो गयी। लेकिन तभी मेरी नजर वहाँ काम करने वाले लोगों पर गयी जो बिना रुके अपना काम कर रहे थे। वो दुखी नहीं थे बल्कि खुश थे यह सोंचकर कि अब उन्हें रोजी-रोटी के लिए अपने गाँव से शहर पलायन नहीं करना पड़ेगा।

दिव्या ने स्पैन लेब बनाकर बीज का प्रोडक्शन भी शुरु किया। जिसमें वह 3 लाख तक का बीज एक हफ्ते में बनाती हैं। दिव्या कहती हैं कि मशरुम की यूनिट लगाने के लिए 20 से 30 हजार की जरूरत पड़ती है जिसमें से लगभग आधा इन्फ्रास्ट्रक्चर में खर्च होता है जो कई साल चलता है, आधा इसकी इसकी प्रोडक्शन कास्ट होती है।

प्रेरणा

दिव्या की प्रेरणा उनकी यूनिट्स में काम करने वाले मजदूर हैं जो उन्हें हर पल आगे बढ़ने का हौसला देते हैं।आज दिव्या की यूनिट्स का टर्नओवर करोड़ो में हैं। जो दिव्या की सफलता को प्रदर्शित करता है।

महिलाओं के लिए 

महिलाओं के बारे में दिव्या का कहना है कि महिलाऐं एक बार आती है तो फिर जाती नहीं है। अपनी इस कड़ी में आगे वो कहती हैं कि मेरी यूनिट्स में 20 साल से लेकर 70 साल तक की बुजुर्ग महिलायें काम करती हैं और यकीन मानिए इनकी एनर्जी में कोई कमी नहीं है।

दिव्या उत्तराखण्ड़ में मशरुम की 70 से 80 लोगों की वर्कशाप भी चलाती हैं उनका सपना है कि देश–दुनिया के कोने-कोने से लोग उत्तरखण्ड आयें और मेरी वर्कशाप में मशरुम उगाने की ट्रेनिंग लें।

नए उद्यमियों के लिए सन्देश

युवाओं के लिए सन्देश में वह कहती हैं कि यूथ अपने कम्फर्ट ज़ोन से बाहर निकलो। और कुछ ऐसा करो कि जो आपके साथ-साथ दूसरों को भी खुशी दे।

सौम्या फूड के बारे में एक लाईन में दिव्या कहती हैं कि एक साथ मिलकर ही आगे बढ़ा जा सकता है।

    “हाँथों की लकीरों को तरक्की से मत जोड़ो क्योंकि कामयाबी नतमस्तक करते वक्त हाथ नहीं देखती है।”