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मुश्किल में हैं स्टार्टअप कंपनियां

भारत में स्टार्टअप क्षेत्र काफी उतार-चढ़ाव के दौर से गुजर रहा है. बीते साल निवेशकों के हाथ खींचने की वजह से इस क्षेत्र को पूंजी की कमी और कर्मचारि‍यों की छंटनी का सामना करना पड़ा.

वर्ष 2015 में स्टार्ट-अप्स का बुखार चरम पर था. लेकिन 2016 में यह उतरने लगा. भारत में 18 हजार से ज्यादा स्टार्टअप कंपनियां हैं और इस मामले में अमेरिका और इंग्लैंड के बाद इसका तीसरा स्थान है. ऐसे में इस सवाल पर बहस तेज हो रही है कि क्या स्टार्टअप का बुलबुला फूट रहा है? इस क्षेत्र को अबकी आम बजट से काफी उम्मीदें हैं.

वर्ष 2015 में सैकड़ों छात्रों ने लाखों की नौकरियों के ऑफर छोड़ कर स्टार्टअप कंपनी शुरू करने को तरजीह दी थी. लेकिन अब तस्वीर बदल रही है. इन संस्थानों के छात्र अब सुरक्षित भविष्य के लिए सरकारी नौकरियों को तरजीह देने लगे हैं. अगस्त 2016 में आईआईटी प्लेसमेंट कमेटी ने पहली बार 31 स्टार्ट-अप्स कंपनियों पर देश भर के आईआईटी कैंपस में आने पर पाबंदी लगा दी थी. उन्होंने कई छात्रों को नौकरियों का ऑफर देकर बाद में वापस ले लिया था.

इनमें ग्रोफर्स, जोमैटो, पोर्टिया मेडिकल और बाबाजॉब्स जैसी कंपनियां भी शामिल हैं. कई स्टार्टअप थपेड़े खाकर बंद हो चुके हैं तो कइयों को खुद को बचाने के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है. नए स्टार्टअप सामने नहीं आ रहे हैं. इसकी वजह यह है कि उन पर पैसा लगानेवाले नहीं हैं. हाल में इन कंपनियों ने अपना वजूद बनाए रखने के लिए नीतियों में कई बदलाव किए हैं. बावजूद इसके उनकी मुश्किलें कम नहीं हो रही हैं.

हाल में भारत के सबसे बड़े ई-कॉमर्स पोर्टल फ्लिपकार्ट ने 700 लोगों को परफार्मेंस ठीक नहीं होने की बात कह कर नौकरी से निकाल दिया. मकानों की खरीद-फरोख्त और उनको किराये पर मुहैया कराने वाली कंपनी हाउसिंग डॉट काम ने भी बीते दिनों 600 कर्मचारियों को बाहर का रास्ता दिखा दिया. इसी तरह आस्कमी डॉट काम में चार हजार लोगों की नौकरियां खतरे में हैं. एक अन्य कंपनी जोमैटो ने भी अपने कर्मचारियों की तादाद में 10 फीसदी कटौती का फैसला किया है.

वजह

इस क्षेत्र के विशेषज्ञों का कहना है कि एक-दूसरे को पछाड़ने की होड़ में तमाम तरह की छूट और ऑफर देने के चक्कर में ऐसी कंपनियों ने अपना पूरा जोर अपनी वैल्यू बढ़ाने पर जोर दिया. लेकिन इस चक्कर में वह मुनाफा बढ़ाने के तरीकों पर ध्यान नहीं दे सकीं. नतीजा सामने हैं. हेडहंटर्स इंडिया के मुख्य कार्यकारी अधिकारी क्रिस लक्ष्मीकांत कहते हैं, “शुरूआती पूंजी मिलने की वजह से ऐसी तमाम कंपनियों ने मोटे पैकेज पर कर्मचारियों की भीड़ जुटा ली थी. इसकी वजह से उनकी पूंजी तेजी से सूखने लगी.” वह कहते हैं कि मुनाफे की सही रणनीति के साथ बाजार में नहीं उतरना ही इसकी प्रमुख वजह रही. विशेषज्ञों का कहना है कि घटती पूंजी और निवेशकों के मुनाफा बढ़ाने पर जोर देने की वजह से इस क्षेत्र में अफरा-तफरी मचने लगी. ऐसे में इसकी गाज सबसे पहले कर्मचारियों पर ही गिरी. लक्ष्मीकांत कहते हैं, “घटते आफरों और लचर होती सेवाओं की वजह से जहां उपभोक्ताओं का मोहभंग होने लगता है वहीं निवेशक भी अपना घाटा कम करने में जुट जाता है. ऐसे में किसी कंपनी के सामने दो ही विकल्प होते हैं. पहला यह कि कोई बड़ी कंपनी उसे खरीद ले या फिर वह खुद को दिवालिया घोषित कर दे.”

बजट से उम्मीदें

अब इस क्षेत्र को कल पेश होने वाले सालाना बजट से काफी उम्मीदें हैं. केंद्रीय उद्योग व वाणिज्य मंत्री निर्मला सीताराम ने हाल में बजट में स्टार्टअप कंपनियों को टैक्स में छूट देने के संकेत दिए थे. मंत्रालय ने ऐसी कंपनियों को टैक्स में मिलने वाली छूट की अवधि मौजूदा तीन साल से बढ़ा कर सात साल करने की सिफारिश की है. एक विशेषज्ञ अमरजीत सिंह कहते हैं, “कोई भी ऐसी कंपनी पांच साल में मुनाफे का मुंह नहीं देख सकती है. ऐसे में टैक्स छूट की सीमा बढ़ाना बेहद जरूरी है.” विशेषज्ञों ने स्टार्टअप कंपनियों के मॉडल में सुधार करने की मांग की है ताकि वह अपने कारोबार पर ध्यान केंद्रित कर सकें. इसके अलावा टैक्स छूट की सीमा बढ़ा कर सात से दस साल करने और टैक्स रिटर्न और एक से ज्यादा निवेशकों से पूंजी हासिल करने को लेकर भी दिशानिर्देश तय करने की मांग उठ रही है. एक स्टार्टअप कंपनी के पार्टनर अरुण नटराजन कहते हैं, “अगले 12 से 24 महीने ऐसी कंपनियों के लिए काफी अहम हैं.”

इस क्षेत्र के विशेषज्ञ मौजूदा संकट को संक्रमण काल के तौर पर देख रहे हैं. पेटीएम के फाउंडर विजय शेखर शर्मा कहते हैं, “महज छूट और तमाम लुभावने आफरों के बल पर ज्यादा दिनों तक टिके रहना संभव नहीं है. बेहतर सेवाओं और वैल्यू के जरिए ही कोई भी स्टार्टअप कंपनी अपने पांव जमा सकती है.” वह कहते हैं कि अधिक से अधिक उपभोक्ताओं को आकर्षित करने के साथ ही मुनाफे की सही रणनीति के साथ बाजार में उतरने वाली कंपनियों को ही कामयाबी मिलेगी. इससे निवेशकों का भरोसा और पूंजी की कोई कमी नहीं होगी.

Source: DW