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मॉनिटरी पॉलिसी: आरबीआई ने नहीं बदलीं नीतिगत ब्याज दरें, रेपो रेट 6.25% पर बरकरार

रिजर्व बैंक की मॉनिटरी पॉलिसी कमिटी (एमपीसी) ने फिर से नीतिगत ब्याज दरों में कोई बदलाव नहीं करने का फैसला किया है। 

मौद्रिक नीति की समीक्षा के बाद कमिटी ने 6.25 प्रतिशत का रेपो रेट ही बरकरार रखा। इसके अलावा, रिवर्स रेपो रेट को 6% और सीआरआर को 4% पर ही बरकरार रखा गया है।

हालांकि, स्टैचुटअरी लिक्विडिटी रेशो (एसएलआर) को 20.50 प्रतिशत से घटाकर 20 प्रतिशत कर दिया। एमपीसी ने जीडीपी ग्रोथ के अनुमान में 0.1 प्रतिशत की कटौती करते हुए इसे 7.4 प्रतिशत से 7.3 प्रतिशत कर दिया है।

विशेषज्ञों का अनुमान सही

दरअसल, विशेषज्ञों ने भी बैंकों में नगदी के अंबार होने का हवाला देते हुए रेट कट की संभावना से इनकार किया था। ईटी ने मॉनिटरी पॉलिसी पर 20 वित्तीय संस्थानों की राय ली थी। इसमें से ज्यादातर ने कहा कि इस बार एमपीसी ब्याज दरों में बदलाव नहीं करेगी, लेकिन सेंटीमेंट बदल सकता है।

उन्होंने उम्मीद जताई थी कि आरबीआई की कॉमेंट्री ‘सॉफ्ट’ रह सकती है। उनका अनुमान था कि एमपीसी के टोन से बैंक के आगे चलकर ब्याज दरों में बदलाव के बारे में संकेत मिलेगा।

अगली समीक्षा में रेट कट की संभावना

2017-18 में अप्रैल से सितंबर के बीच आरबीआई ने महंगाई दर का अनुमान 4.5 प्रतिशत रखा है। वहीं, दूसरी छमाही में उसे इसके 5 प्रतिशत रहने की उम्मीद है। रिटेल इन्फ्लेशन अप्रैल में 2.99 प्रतिशत के रेकॉर्ड लो लेवल पर आ गई थी, जबकि मार्च में यह 3.89 प्रतिशत के साथ पांच महीने के पीक पर थी। बेस इफेक्ट और फूड प्रॉडक्ट्स के दाम कम होने से महंगाई काबू में है।

इसके साथ ही, देश में 1 जुलाई से गुड्स ऐंड सर्विसेज टैक्स (जीएसटी) लागू होने जा रहा है। मॉनसून सीजन में बारिश का भी महंगाई पर असर पड़ेगा। वहीं, पिछले कुछ महीनों से क्रूड ऑइल के दाम में गिरावट आ रही है, जो भारत के हक में है।

जेटली ने जताई थी रेट कट की उम्मीद

मुद्रास्फीति में नरमी को देखते हुए सरकार ने उम्मीद जताई थी कि रिजर्व बैंक नीतिगत ब्याज दर में कमी कर सकता है और इससे निवेश और वृद्धि रफ्तार को बल मिलेगा।

वित्त मंत्री अरुण जेटली ने कहा था कि मुद्रास्फीति लंबे समय से नियंत्रण में है। बेहतर मॉनसून और कच्चे तेल के दाम में वृद्धि नहीं होने की उम्मीद को देखते इसके नियंत्रण में ही बने रहने की उम्मीद है।

जेटली ने कहा था, ‘आर्थिक वृद्धि और निवेश बढ़ाने की जरूरत है। इन परिस्थितियों में कोई भी वित्त मंत्री चाहेगा कि दर में कटौती हो, निजी क्षेत्र भी दर में कटौती चाहता है। लेकिन, जब बात एमपीसी की हो तो मैं उनके फैसले की प्रतीक्षा करना बेहतर समझता हूं।’

Source: Economic Times