एमएसएमई डिपार्टमेंट द्वारा साझा की गयी जानकारी के मुताबिक राज्य में मौजूद रिवाइवल के योग्य 2,532 एमएसएमई में से मात्र 726 सिक एमएसएमई ने खुद को रिवाइव करने के लिए अप्लाई किया है। इसका कारण बैंको द्वारा पुर्नजीवन के लिए पुनर्भुगतान पर जोर देना है।
चूंकि संख्या बहुत कम है। इसीलिए एडीशनल डायरेक्टर ने विभागों को आदेश दिया है कि वह पता लगायें कि कितने मामले सिक एमएसएमई के हैं और कितनी एमएसएमई ने खुद को रिवाईव करने के लिए अप्लाई किया है।
भारतीय रिजर्व बैंक ने एक नियम के तहत कहा है कि एक समय से पहले सिक एमएसमई के प्रांरभिक लक्षण का पता लगाया जाए और उसके बाद एमएसएमई को बुनियादी सहायता प्रदान की जाए।
बैंक ने गाइड़लाईन जारी कर यह नियम बनाया था जिससे कि शुरुआती दौर में ही एमएसएमई की सिकनेस (बीमारी) पता लगाया जा सके।
भारतीय रिजर्व बैंक ने हाल ही में एक राज्य स्तरीय बैंकर्स समिति की बैठक में कहा था कि सभी बैंकों को लघु उद्योगों के फिर से खड़ा होने व उनके पुनर्वास के लिए व्यापक ढांचे का सख्ती से पालन करना होगा।
इसके साथ ही बैंक ने जोर देकर यह भी कहा था कि एमएसएमई का ऋण गैर निष्पादित परिसंपत्तियों में बदलने से पहले, बैंकों को इकाइयों के खाते में कितनी देनदारी है इसका पता लगाकर उसके बारे में कमेटी को बताये जिससे की सुधारात्मक कार्रवाई हो सके।
एमएसएमई विभाग ने सिक एमएसएमई को फिर से व्यापार के लिए सशक्त बनाने के उद्देश्य से 31 मार्च तक बैंकों को सिक इकाइयों का अध्ययन कर रिपोर्ट सौंपने को कहा है।