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GoodNews: खरीद नीति से घरेलू उद्योग को दम

सार्वजनिक खरीद में स्वदेशी कंपनियों को वरीयता देने की सरकारी नीति से स्थानीय विनिर्माताओं और सेवा प्रदाताओं को 4 लाख करोड़ रुपये (650 अरब डॉलर) से अधिक के सालाना बाजार का एक बड़ा हिस्सा हाथ लग सकता है।

केंद्रीय मंत्रिमंडल ने बुधवार को इस नीति को हरी झंडी दी थी। एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि कुल सरकारी खरीद का अनुमान लगाना तो मुश्किल है लेकिन रक्षा, कच्चे तेल और  कृषि पर सार्वजनिक खर्च देखें तो यह सालाना करीब 4 लाख करोड़ रुपये बैठता है।

सरकार सभी तरह के उत्पादों और सेवाओं की खरीद करती है लेकिन फिक्की के अध्यक्ष पंकज पटेल का कहना है कि सार्वजनिक खरीद नीति से बुनियादी क्षेत्र के सीमेंट और स्टील जैसे सेक्टरों को मदद मिलेगी।

घरेलू उद्योग जगत का कहना है कि यह संरक्षणवाद नहीं है क्योंकि अमेरिका सहित दुनिया के बड़े बाजारों में ऐसा होता रहा है। पटेल ने कहा, ‘निश्चित रूप से घरेलू उद्योग को सरकार से कुछ सपोर्ट चाहिए क्योंकि घरेलू बाजार को सभी के लिए खोल दिया गया है।’

सीआईआई के पूर्व अध्यक्ष नौशाद फोर्ब्‍स के मुताबिक इससे रक्षा के क्षेत्र में भी घरेलू कंपनियों के पास बेहतरीन मौका रहेगा।

उन्होंने कहा, ‘रक्षा में कई वर्षों से दुनिया का सबसे बड़ा आयातक होने के बावजूद भारत ने निजी क्षेत्र को इससे दूर रखा।’ अब भारतीय कंपनियां स्वदेशी उपकरणों के विकास में निवेश कर सकती हैं।

अलबत्ता निर्यातकों को आशंका है कि इस नीति से कीमतों में उछाल आएगा जिससे इनपुट लागत बढ़ेंगी।

फेडरेशन ऑफ इंडियन एक्सपोर्ट्स ऑर्गेनाइजेशन के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि इंजीनियरिंग सामान जैसे क्षेत्रों में इसका असर होगा क्योंकि स्टील की कीमतें और बढ़ेंगी तथा एंटी डंपिंग के कारण विदेशी स्टील नहीं मिलेगा।

दूसरी ओर प्रमुख तेल कंपनियों का कहना है कि वे पहले से ही घरेलू स्तर पर खरीद कर रही हैं।

इंडियन ऑयल कॉर्पोरेशन के चेयरमैन बी अशोक ने कहा, ‘सरकार की नीति से घरेलू विनिर्माण उद्योग को बढ़ावा मिलेगा। हमें स्थानीय खरीद से कोई समस्या नहीं है।

सरकारी कंपनी होने के कारण हमें कम से 20 फीसदी खरीद छोटी और मझोली कंपनियों से खरीदना पड़ता है। हम करीब 35 फीसदी खरीद घरेलू कंपनियों से करते हैं।’

केंद्रीय बिजली प्राधिकरण ने पिछले साल एक परामर्श जारी कर बिजली परियोजनाओं को घरेलू कंपनियों से अधिकतम खरीद करने को कहा था।

जानकारों का कहना है कि इस नीति से छोटी और मझोली कंपनियों को मदद नहीं मिलेगी क्योंकि उन्हें पहले से ही वरीयता दी जा रही है और अमूमन वे जिस तरह के उत्पाद बनाती हैं, उनमें विदेशी कंपनियां प्रतिस्पद्र्घा में नहीं हैं।

अर्थशास्त्री देंवेद्र पंत के मुताबिक ऐसी कुछ कंपनियों को भविष्य में फायदा हो सकता है। ऐसा तभी होगा जब इन कंपनियों के उत्पादों से बने तैयार माल की कीमत बढ़ेगी।

Source: Business Standard