GST/रिटर्न फाइलिंग: SMEs के लिए 1 जुलाई से जीएसटी लागू होने के बाद बदल जाएगा पूरा माजरा


छोटे व्यवसाय भारतीय अर्थव्यवस्था की रीढ़ हैं। ये देश की अर्थव्यव्स्था और औद्योगिक विकास को गति देकर नौकरियां पैदा करते हैं। हालांकि, देश में बहुत से व्यवसाय नियमित रूप से रिटर्न फाइल नहीं करते और न ही टैक्स अदा करते हैं। इसकी कुछ वजहें हो सकती हैं। मसलन, जानकारी का अभाव, परिस्थितिजन्य परेशानियां या कारोबारियों […]


GST-Taxछोटे व्यवसाय भारतीय अर्थव्यवस्था की रीढ़ हैं। ये देश की अर्थव्यव्स्था और औद्योगिक विकास को गति देकर नौकरियां पैदा करते हैं। हालांकि, देश में बहुत से व्यवसाय नियमित रूप से रिटर्न फाइल नहीं करते और न ही टैक्स अदा करते हैं। इसकी कुछ वजहें हो सकती हैं।

मसलन, जानकारी का अभाव, परिस्थितिजन्य परेशानियां या कारोबारियों की यह धारणा कि आकार, संचालन और कमाई के लिहाज से उनका बिजनस बहुत छोटा है, इसलिए डेडलाइन मिस भी हो जाए तो चलता है। यही वजह है कि उन्हें टैक्स डिपार्टमेंट नोटिस भेजकर टैक्स पेमेंट, इंट्रेस्ट, लेट फी और पेनल्टीज की मांग करता रहता है।

एक व्यापक अप्रत्यक्ष कर प्रणाली के रूप में जीएसटी लागू होते ही मौजूदा अप्रत्यक्ष कर खत्म हो जाएंगे और इसके लागू होते ही किसी व्यवसाय की सफलता और विश्वसनीयता इस बात पर बहुत हद तक निर्भर हो जाएगी कि कारोबारी जीएसटी के नियमों का किस हद तक पालन कर रहे हैं।

जीएसटी सेल्फ-मॉनिटरिंग मेकनिजम पर काम करेगा। इस मॉडल के तहत वस्तु एवं सेवा मुहैया करवाने वाले और प्राप्त करने वालों के बीच इनवॉइस की बड़ी भूमिका होगी। दोनों इनवॉइस मैच करने और सप्लायर की ओर से टैक्स पे करने के बाद ही कन्ज्यूमर को इनपुट टैक्स क्रेडिट मिल पाएगा।

ऐसे में कोई भी ग्राहक वैसे वेंडरों के साथ ही बिजनस करना चाहेगा जो जीएसटी के नियम-कानून का सही-सही पालन करता हो। इस तरह जीएसटी लागू होने के बाद ग्राहक और दुकानदार या सेवा प्रदाता के बीच का भावनात्मक रिश्ता बदल जाएगा और कानून पालन की अनिवार्यता इस रिश्ते की जगह ले लेगी।

इस तरह जीएसटी लागू होने पर टैक्स कानून का पालन नहीं करने से फाइन, इंट्रेस्ट और पेनल्टीज के रूप में खर्चे बढ़ जाएंगे बल्कि आपके व्यवसाय पर भी असर होगा और कंप्लायंस रेटिंग भी घट जाएगी। चलिए, जीएसटी के तहत फाइल होने वाले विभिन्न प्रकार के रिटर्न्स के साथ-साथ इन्हें फाइल करते वक्त ध्यान रखने वाली बातों पर गौर करें…

महीने की 10 तारीख को फॉर्म जीएसटीआर-1

फॉर्म जीएसटीआर-1 में आपको हर महीने बेचे गए सामान या दी गई सेवाओं का विस्तृत जिक्र करना होगा। रजिस्टर्ड डीलरों को सप्लाइज के हरेक इनवॉइस और ग्राहकों के लिए सामानों और सेवाओं की कुल कर योग्य कीमत की जानकारी देनी होगी। अगर दूसरे राज्य के ग्राहक को की गई आपूर्ति की कर योग्य कीमत 2.5 लाख रुपये से अधिक है तो हर हरेक इनवॉइस का विवरण देना होगा।

11 तारीख को फॉर्म जीएसटीआर-2ए

जीएसटीआर-1 में सप्लायर की घोषणा के आधार पर महीने की 11वीं तारीख को प्राप्तकर्ता के लिए जीएसटीआर-2ए फॉर्म तैयार हो जाएगा। 11 से 15 तारीख के बीच इसमें संशोधन किया जा सकता है। रिटर्न फाइल करने के नजरिए से यह अवधि काफी महत्वपूर्ण होगी क्योंकि अगर इस दौरान आपने जीएसटीआर-2ए में संशोधन नहीं किया तो आपकी इनपुट टैक्स क्रेडिट एलिजिबलिटी पर असर पड़ सकता है। खास बात यह है कि नियमों का पालन करने और समय की बचत करने में टेक्नॉलजी आपकी बहुत मददगार साबित होगी।

15 तारीख को फॉर्म जीएसटीआर-2

फॉर्म जीएसटीआर-2ए में दी गई जानकारी के अतिरिक्त कोई दावा करने के लिए 15 तारीख तक जीएसटीआर-2 फॉर्म जमा कर देना होगा। जीएसटीआर-2 में दी गई जानकारी के आधार पर आपके ई-क्रेडिट लेजर में आईटीसी क्रेडिट हो जाएगा और इनवॉइस मैच होने पर यह पक्का हो जाएगा।

16 तारीख को फॉर्म जीएसटीआर-1ए

फॉर्म जीएसटीआर-2 में आप जो सुधार करेंगे, उन्हें आपके सप्लायर को फॉर्म जीएसटीआर-1ए के जरिए मुहैया कराया जाएगा। तब सप्लायर आपके संशोधनों को स्वीकार या खारिज करेगा।

20 तारीख को जीएसटीआर-3
फॉर्म जीएसटीआर-1 और जीएसटीआर-2 के आधार पर 20 तारीख को ऑटो-पॉप्युलेटेड रिटर्न जीएसटीआर-3 उपलब्ध हो जाएगा जिसे आप पेमेंट के साथ जमा कर सकते हैं।

फॉर्म जीएसटी एमआईएस-1 में इनपुट टैक्स क्रेडिट की आखिरी स्वीकृति

फॉर्म जीएसटीआर-3 में मंथली रिटर्न फाइल करने की सही तारीख के बाद आंतरिक आपूर्ति और बाह्य आपूर्ति में मिलान किया जाएगा। तब जीएसटी एमआईएस-1 में इनपुट टैक्स क्रेडिट को आखिरी स्वीकृति मिलेगी। बिलों के मिलान के वक्त इनका सहारा लिया जाएगा…
सप्लायर का जीएसटीआईएन
रिसीपिअंट का जीएसटीआईएन
इनवॉइस या डेबिट नोट नंबर
इनवॉइस या डेबिट नोट डेट
टैक्सेबल वैल्यू
टैक्स अमाउंट
इसी मिलान के आधार पर इनपुट टैक्स क्रेडिट के दावे पर विचार किया जाएगा।

निष्कर्ष

कुल मिलाकर, जीएसटी के नियमों का पालन एक दिन का काम नहीं है। जीएसटी के तहत रिटर्न साइकल मौजूदा रिवाजों को खत्म कर देगा। अभी ज्यादातर छोटे कारोबारी अपनी खरीद और बिक्री का आकलन कर एक दिन में रिटर्न तैयार कर लेते हैं। लेकिन, अब ऐसा नहीं होगा क्योंकि जीएसटी रिटर्न साइकल पूरे महीने चलने वाला है। दूसरी बात यह कि कारोबारियों को ऑफलाइन की जगह ऑनलाइन आंकड़े सुरक्षित करने होंगे। तीसरी महत्वपूर्ण बात यह कि इस पूरी प्रक्रिया में टेक्नॉलजी की महत्वूर्ण भूमिका होगी।

Source: Economic Times

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