गुड्स ऐंड सर्विसेज टैक्स (जीएसटी) लागू होने के बाद वस्तुओं की कीमतें नियंत्रित रखने के लिए वित्त मंत्रालय सामान्य जरूरत के 2,000-2,500 सामानों और सेवाओं की कीमतें तय करने पर काम कर रहा है। सरकार इस बात पर भी गौर कर रही है कि अभी उनकी कीमतें क्या हैं और जीएसटी लागू होने के बाद क्या हो जाएंगी। सूत्रों ने बताया कि यह डेटा इस महीने के आखिर तक रिलीज कर दिया जाएगा और इसमें सभी बड़े शहरों को समाहित किया जाएगा। एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, ‘हम छोटे शहरों और ग्रामीण इलाकों के स्तर तक कीमतें कम नहीं कर सकते, हालांकि प्राइस चार्ज सांकेतिक होगा।
सरकार यह सुनिश्चित करना चाहती है कि कारोबारी जमात ऊंची लागत का हवाला देकर नई व्यवस्था का लाभ दाम बढ़ाकर न लेने लगें। दरअसल, प्रमुख वस्तुओं की कीमतें बढ़ीं तो सरकार को संभालना मुश्किल हो जाएगा, इसीलिए वह एक विस्तृत अध्ययन करा रही है।
मौजूदा समय में प्रमुख वस्तुओं और सेवाओं की कीमतों में बढ़ोतरी नहीं की जा सकती। इससे खाने के सामान पर कीमतें नियंत्रित रहेंगी और साबुन जैसे अन्य कन्ज्यूमर गुड्स पर कम टैक्स लगेगा। प्रॉडक्ट कैटिगरी में भी कुछ अंतर रखा गया है जिसकी अर्थशास्त्रियों ने निंदा की है।
हालांकि, केंद्रीय वित्त मंत्री और राज्यों के वित्त मंत्रियों वाली जीएसटी काउंसिल ने होटल और रेस्तरां पर मल्टीपल स्लैब के तहत टैक्स लगाने का फैसला किया है। इसी तरह काउंसिल की शनिवार को होनेवाली बैठक में महंगे बिस्किट की तुलना में सस्ते बिस्किट पर लगने वाले टैक्स में अंतर हो सकता है।
सरकार को मलेशिया में बनी स्थिति के मद्देनजर जीएसटी लागू होने के बाद कुछ चीजों के दाम में इजाफे का डर लग रहा है। इससे बचने के लिए केंद्र ने जीएसटी कानून में मुनाफाखोरी रोकने का प्रावधान तय किया है। सरकार ने उद्यमों को पहले ही चेतावनी दी है कि अगर उन्होंने नई टैक्स व्यवस्था के तहत होनेवाला लाभ ग्राहकों को नहीं दिया गया तो वह इस प्रावधान को लागू कर सकती है।
सरकार ने कीमतें तय करने का फैसला ऑस्ट्रेलिया के उदाहरण से लिया है। वहां की सरकार ने 185 सामान्य इस्तेमाल की वस्तुओं की तीन साल के लिए कीमत तय कर दी थी।
भारत में सरकार ने अभी मुनाफाखोरी पर नजर रखनेवाली एजेंसी की नियुक्ति नहीं की है। अभी कुछ नियम भी नहीं बने हैं, लेकिन सरकार को उम्मीद है कि आने वाले चार सप्ताह में यह काम भी निपटा दिया जाएगा।
अधिकारियों का भी मानना है कि सरकार सभी चीजों की कीमतों पर नजर नहीं रख पाएगी और आनेवाली शिकायतों पर भी कार्रवाई नहीं कर पाएगी। केंद्र का मानना है कि इस काम में राज्यों को अहम भूमिका निभानी चाहिए।
Source: Economic Times