रांची : लंबे समय बाद सरकार ने खादी से आदिवासियों को जोड़ने की पहल की है। 1925 में ही आदिवासियों को चरखा और खादी से जोड़ने की बात कही गई थी, पर पहल अब हुई है। इसे लेकर सोमवार को खादी एवं ग्रामोद्योग आयोग, सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्योग मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा दो दिवसीय ‘अभयारण्य कार्यशाला’ का शुभारंभ खेलगांव के डॉ.रामदयाल मुंडा कला भवन में किया गया। उद्घाटन राज्यपाल द्रौपदी मुर्मू एवं खादी एवं ग्रामोद्योग आयोग के अध्यक्ष विनय कुमार सक्सेना तथा पद्मश्री अशोक भगत आदि ने किया।
राज्यपाल ने कहा कि झारखंड की धरती वीरों की है। यहां कई ऐसे सपूत एवं महानायक पैदा हुए, जिन्होंने समाज एवं देश के लिए अपनी कुर्बानी दी। बिरसा मुंडा, सिद्धो-कान्हू, चांद-भैरव, शेख भिखारी..अनगिनत नाम हैं, पर झारखंड उपेक्षित ही रहा। यह धरती प्राकृतिक रूप से भी समृद्ध है। धरती के नीचे और ऊपर अपार खनिज संपदा है। पर्यटन की असीम संभावना है, फिर भी यहां के युवक दूसरे शहरों में काम की तलाश में भटकते हैं।
ऐसे में बेरोजगार युवाओं को भटकाव से रोकने एवं विकास की मुख्यधारा से जोड़ने के लिए रोजगार से जोड़ने की पहल होनी चाहिए। वे आर्थिक रूप से मजबूत एवं सशक्त होंगे, तो सामाजिक दशा में भी सुधार होगा।
राज्यपाल ने टाना भगतों का विशेष रूप से उल्लेख करते हुए कहा कि इन्होंने गांधीजी के बताए मार्ग पर चलकर सत्याग्रह आंदोलन में भाग लिया। ये आज भी चरखा चलाते हुए गांधी टोपी पहनते हैं और तिरंगे की पूजा करते हैं। इनकी जितनी भी सराहना की जाए कम है। पर, कई सालों से टाना भगत भी सहायता की आस लिए हैं। ऐसे में खादी और ग्रामोद्योग आयोग इन टाना भगतों के आर्थिक विकास में अहम भूमिका अदा कर सकता है। उन्होंने यह भी जोड़ा कि गांव के विकास से ही देश का विकास संभव है।
बापू को याद करते हुए कहा कि राष्ट्रपति महात्मा गांधी का भी यही विचार था कि ग्रामीणों, आदिवासियों को उनके कार्य की उचित मजदूरी मिले, जिससे उनका समग्र विकास हो सके। ऐसे में खादी और ग्रामोद्योग आयोग ग्रामीण क्षेत्र के कारीगरों को अपने कार्यक्रमों से जोड़कर उनकी आर्थिक समृद्धि में भागीदार बन सकता है। साथ ही विलुप्त हो रहे हुनर का संरक्षण कर सकता है। खादी और ग्रामोद्योग आयोग, खादी के साथ-साथ गांव केंद्रित उद्योग सेक्टर में भी बहुत सारे कार्यक्रम चला रहा है, जैसे खनिज आधारित, वन आधारित, कृषि आधारित, पोलीमर एवं रसायन आधारित आदि। इसके आलावा झारखंड में मधुमक्खी पालन की अपार संभावनाएं हैं।
उन्होंने ओडिशा और झारखंड से आए सैकड़ों आदिवासियों से अपील की कि वे यहां दो दिन गंभीरता से कार्यशाला में भाग लें और खादी से जुड़ें।
डेढ़ साल में खादी की शक्ति को मिली पहचान
आयोग के अध्यक्ष विनय कुमार सक्सेना ने कहा कि यह ऐतिहासिक दिन है। पहली बार आयोग आदिवासियों के उत्थान के लिए इस योजना का शुभारंभ कर रहा है। खादी कमीशन घर बैठे लोगों को रोजगार देता है। डेढ़ साल में खादी की शक्ति को पहचान मिली है। रोजगार सृजन में सबसे आगे आयोग रहा है। हमने चार लाख तीन हजार लोगों को रोजगार दिया है। हमें 11 सौ करोड़ का लक्ष्य दिया गया था और आयोग ने 1281 करोड़ का ऋण लोगों को दिया। अब आयोग में सीधे ऑनलाइन आवेदन कर सकते हैं। यह एक जुलाई से शुरू हुआ, तब से अब तक चार लाख आवेदन आ गए हैं। केंद्र सरकार की स्कीमों को आदिवासी बहुल क्षेत्रों में लागू करना है। इसके लिए इस कार्यशाला का आयोजन किया गया है। आदिवासी इन स्कीमों से नहीं जुड़ पाता था या उन्हें जानकारी नहीं होती थी। इन स्कीमों के लागू होने से गांव से पलायन रुकेगा। घर बैठे वे कमा सकेंगे। इस योजना के तहत पांच हजार आदिवासी को रोजगार देने का अभी लक्ष्य रखा गया है। उन्होंने प्रधानमंत्री मोदी का जिक्र करते हुए स्वीट क्रांति की बात कही। कहा, झारखंड में भी स्वीट क्रांति के तहत हनी मिशन को लागू किया जाएगा। एक हजार हनी बाक्स लोगों को दिया जाएगा। इसके साथ ही झारखंड में खादी की नई संस्थाओं को भी आयोग से जोड़ा जाएगा और उन्हें ऋण मुहैया कराया जाएगा, ताकि अधिक से अधिक लोग रोजगार पा सकें। उन्होंने पद्मश्री अशोक भगत को भी झारखंड का गांधी करार दिया, जिनके कारण इस कार्यशाला का आयोजन रांची में हो रहा है।
अभयारण्य को बनाएंगे सफल
मौके पर आयोग के सदस्य एवं विकास भारती के सचिव अशोक भगत ने कहा कि पहले आदिवासियों के लिए दंडकारण्य चला था, जो फेल हो गया। हम अभयारण्य लेकर आए हैं, इसे फेल होने नहीं देना है। आदिवासियों को मुख्यधारा में ले आना है, उन्हें रोजगार देना है। खादी आयोग रोजगार देने में सक्षम है। उन्होंने कहा कि ट्राइबल सब प्लान का पैसा भी दूसरे मद में खर्च हो जा रहा है, पर अब ऐसा नहीं होगा। मौके पर केवीआइसी की अंशु सिंह, उषा सुरेश, डिप्टी सीइओ केएस रॉव के अलावा झारखंड खादी बोर्ड के पदाधिकारी, खादी इंडिया के जयनंदू सहित सैकड़ों आदिवासी उपस्थित थे।
Source: Jagran