पूरी दुनिया में अपनी अलग कढ़ाई के लिए प्रसिद्ध लखनऊ चिकनकारी को सरकार के विशेष प्रयासों की जरूरत


नवाबी शहर के शहर के नाम से पूरी दुनिया में मशहूर लखनऊ की विभिन्न खूबियों में से एक है यहां पर की जाने वाली चिकनकारी। यहां की चिकनकारी पूरी दुनिया में प्रसिद्ध है। यह भारत मे की  जाने बेहतरीन और महीन कशीदाकारी का एक प्रकार है जो सादे मलमल पर सफेद धागे से बनाई जाती […]


lucknow-chikankari-2नवाबी शहर के शहर के नाम से पूरी दुनिया में मशहूर लखनऊ की विभिन्न खूबियों में से एक है यहां पर की जाने वाली चिकनकारी। यहां की चिकनकारी पूरी दुनिया में प्रसिद्ध है। यह भारत मे की  जाने बेहतरीन और महीन कशीदाकारी का एक प्रकार है जो सादे मलमल पर सफेद धागे से बनाई जाती है।

200 साल पुराना इतिहास

इसका  इतिहास करीब 200 साल पुराना है लेकिन तकनीकि सुविधा की कमी के कारण यह कढ़ाई असंगठित क्षेत्र तक ही सीमित रही है।  इसके बावजूद भी यह कला अपनी प्रतिभा बिखेरने में कामयाब रही है। इस कला के बारे यह भी तर्क दिया जाता है कि मुगल सम्राट जहांगीर की पत्नी इसे ईरान से सीख कर आयी थी। मुगलकाल के दौर में शुरु हुआ चिकनकारी का सफर आज भी बदस्तूर जारी है और यह कला आज विश्वभर में पहचानी जाती है।

कढ़ाई की विशेष शैली

चिकनकारी लखनऊ की कढ़ाई और कशीदाकारी की एक विशेष शैली है, शायद यही वजह है कि लकनऊ को चिकनकारी का केंद्र भी कहा जाता है। लखनऊ में कढ़ाई करने का ज्यादातर काम पुराने लखनऊ में होता है। इस उधोग का खास पहलू यह भी है कि इसमें 95 फीसदी महिलाऐं काम करती है। इस कला का एक खूबसूरत नमूना लंदन के रॅायल अल्वर्ट म्यूजियम में भी देशभर के पर्यटकों को अपनी खूबसूरती बताता है।

मजदूरों की ख़राब होती हालत

चिकनकारी के बाजार की स्थिति काफी अच्छी है इसके बावजूद भी इस क्षेत्र से जुड़े मजदूरों की हालत दिन प्रतिदिन बिगड़ती हा जा रही है। इससे जुड़े कारीगर तेजी से इस व्यवसाय को छोड़ रहे हैं, आज लखनऊ के कई कारखाने इसी कारण वीरान पड़े हैं। लेकिन प्रशासन इस पर पूर्णतया खामोश है। मजदूरो की  कमी का एक कारण मनरेगा भी है क्योकि इसकी मजदूरी चिकनकारी की मजदूरी से अधिक होती है।

चिकनकारी का बढ़ता बाजार 

लखनऊ मे कई ऐसे उम्दा कारीगर भी है जिन्होंने अपने सराहनीय काम से न केवल देश में बल्कि विदेशों में भी कई अवार्ड प्राप्त किए हैं। इस कला का देशी बाजार सालाना 350 करोड़ रुपये है जो इस कला की परिभाषा को पूर्णतया व्यक्त करता है।

टेक्सटाइल मिनिस्ट्री में एडिशनल सैक्रेटरी, पुष्पा सुब्रह्मण्यम ने SMEpost से बात करते हुए कहा कि लखनऊ चिकनकारी क्षेत्र के विकास के लिए सबसे पहले मजदूरी बढ़ाने की जरुरत है। इसके लिए उत्पादन क्षमता में बढोत्तरी करनी होगी। अच्छे टूल रूम बनाने होंगे। इसके साथ ही उच्च क्वालिटी के यूनिक प्रोडक्ट बनाऐं जिन्हें बड़े बाजारो में बेचकर मजदूरी में बढ़ोत्तरी हो सके।

इंस्टीट्यूट आँफ फैशन टैक्नोलोजी की सीएमडी आसमा हुसैन कहती हैं कि चिकनकारी के विकसित न होने का प्रमुख कारण इसका काफी महंगा होना है क्योकि यह पूरी तरह से हाथों द्वारा बनाई जाती है और इस कढाई को करने में काफी समय लगता है। मंहगे होने के कारण इसे एक बड़ा वर्ग ही खरीदने में सक्षम है।

अब इस क्षेत्र को अपनी तरक्की के लिए जरुरत है तो सही दिशा और सरकार के विशेष सहयोग की। साथ ही एक ऐसी व्यस्था हो जिसमें बिचौलियों का रोल ख़त्म करके मजदूरों की मेहनत पैसा सीधे उन तक पहुंचे।

Shriddha Chaturvedi

ख़बरें ही मेरी दुनिया हैं, हाँ मैं पत्रकार हूँ

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