एमएसएमई मंत्रालय ने पीलीभीत के पारंपरिक बांसुरी उद्योग को पुनर्जीवित करने की पहल की है। बांसुरी उद्योग आज खत्म होने की कगार पर है।
टाइम्स ऑफ़ इंडिया की एक ख़बर के अनुसार मिनिस्ट्री इस सेक्टर में कार्यरत बांसुरी कलाकरों को स्फूर्ति योजना- SFURTI (Scheme of fund for regeneration of traditional industries) के तहत उत्पादों की मार्केटिंग व मैन्युफैक्चरिंग करने में मदद करेगी और कलाकरों को उनकी कला के विकास के लिए मंच मुहैया कराएगी।
इस दिशा में खादी और ग्रामोद्योग आयोग (केवीआईसी) एक नोडल एजेंसी के रूप में कार्य करेगा। वहीं दिल्ली स्थित ग्रन्ट थॉर्नटन (Grunt Thornton) नामक आर्गेनाइजेशन उद्योग के विकास के लिए तकनीकी सहायता प्रदान करेगा।
शाहजहांपुर स्थित गैर सरकारी संगठन विनोबा सेवाश्रम स्थानीय स्तर पर योजना का प्रबंधन करेगा। योजना के तहत आईसक्रीम स्टिक, आगरबत्ती स्टिक, टूथ प्रिक्स और अन्य बांस का सामान बनाने वाली यूनिट्स पर फोकस किया जाएगा।
विनोबा सेवाश्रम एनजीओ के सेक्रेटरी मुदित सक्सेना ने कहा है कि पिछले साल अगस्त में केवीआईसी द्वारा पीलीभीत के बांसुरी कलाकारों की स्थिति की पता लगाने के लिए घर-घर जाकर सर्वे किया गया था। अध्ययन में पाया गया कि इन कलाकारों की रोजाना की आमदनी 67 से 175 रुपये प्रतिदिन है।
मंत्रालय ने केवीआईसी और विनोबा सेवाश्रम द्वारा मिलकर पेश की गयी रिपोर्ट को देखने के बाद में इन कलाकारों के पुर्नउत्थान के लिए कार्य करने का आदेश दिया है।
सक्सेना ने कहा कि उद्देश्य को पूरा करने के लिए एक ट्रस्ट का गठन किया जाएगा। जिसमें 70% भागीदारी कारीगरों की होगी।
उन्होंने कहा कि विनिर्माण प्रक्रिया में सुधार के लिए राज्य में मशीन और उपकरणों को लाने की योजना है। केवीआईसी बांसुरी के विपणन यानी मार्केटिंग में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा।
केवीआईसी और विनोबा सेवाश्रम की एक संयुक्त टीम पहले से ही जयपुर, मथुरा, नई दिल्ली, मुंबई, अहमदाबाद और हैदराबाद में बांसुरी के बाजार का पता लगा चुकी है।