बिहार में करीब 200 स्टार्टअप हैं। परंतु दो दर्जन भी इस स्थिति में नहीं हैं जो स्टार्टअप के मूल मानक के आसपास भी खड़े हो सकें। पूरे बिहार में मात्र दो दर्जन ही ऐसे स्टार्टअप हैं, जो नियमावली के मानक पर स्टार्टअप कहे जा सकते हैं। हालांकि योजनाओं के लाभ लेने के लिए इन्हें भी स्टार्टअप की सरकारी मुहर का इंतजार है।
औपचारिकताओं के अभाव में इन चुनिंदा फर्म को भी स्टार्टअप योजनाओं का लाभ नहीं मिल पा रहा है। केंद्र द्वारा स्टार्टअप के लिए टैक्स में भारी छूट का लाभ भी इस वर्ष इन्हें नहीं मिलेगा। इनमें से टैक्स छूट के लिए एक भी आवेदन पुख्ता नहीं है। स्टार्टअप योजना के लाभ से लेकर टैक्स छूट लेने में बिहार के नवउद्यमी पिछड़ रहे हैं।
बिहार सरकार नव उद्यमियों को आगे लाने के लिए स्टार्टअप नीति लागू कर चुकी है। नीति के तहत 5 साल तक की एजेंसियों को फायदा मिलना है। राज्य सरकार के 500 करोड़ का स्टार्टअप कैपिटल में से एसटी और एससी को 22 फीसदी की राशि रिजर्व कर दिया गया है वही महिलाओं और एससी/एसटी कोटे के लोगों को भी अतिरिक्त लाभ दी जा रही है। केंद्र ने भी अप्रैल 2016 में स्टार्टअप योजना शुरू की थी। इसके बारे में जागरुकता के लिए हेल्पलाईन के रूप में स्टार्ट-अप इंडिया हब शुरू किया गया था। स्टार्ट हब में एक वर्ष के अंदर टेलीफोन, ईमेल और ट्वीटर पर करीब 33 हजार सवालों को सुलझाया गया है। परंतु बिहार में इसके बारे में जागरूकता बेहद कम है।
कितनी है छूट
स्टार्टअपके लिए ‘फंड ऑफ फंड्स’ में 10 हजार करोड़ रुपए सिडबी के माध्यम से प्रबंधित किये जा रहे हैं। बिहार सरकार ने इस उद्देश्य से 500 करोड़ का स्टेट फंड रखा है। स्टार्टअप एक इकाई है, जो भारत में पांच साल से अधिक से पंजीकृत नहीं है और जिसका सालाना कारोबार किसी भी वित्तीय वर्ष में 25 करोड़ रुपए से अधिक नहीं है। इस मानक पर ही कंपनियों का स्टार्टअप आवेदन स्वीकार किया जाता है। इसके बाद ही स्टार्टअप शुरू करने वाली कंपनियों को टैक्स में 7 साल तक छूट की पात्रता परखी जाती है।
कहां है समस्या
स्टार्टअपके लिए श्रम कानूनों को लेकर देश के 11 राज्यों ने सेल्फ सर्टिफिकेशन की सुविधा दे रखी है। इसके अंतर्गत छह बेहद जरूरी श्रम कानूनों का अनुपालन आसान हो जाता है। परंतु बिहार में पारंपरिक नियम ही लागू है। इससे भी स्टार्टअप में निराशा है। हालांकि सरकारी अधिकारी अपनी तर्क देते हैं। चूंकि स्टार्टअप के लिए अब आईपीआर बेनिफिट और इनक्यूबेशन फीस आदि के लिए सिर्फ डीआईपीपी से रजिस्ट्रेशन सर्टिफिकेशन लेना होता है। पहले स्टार्टअप को ये फायदा लेने के लिए इंटर मिनिस्ट्रियल बोर्ड से सर्टिफिकेट लेना होता था, जिसकी प्रक्रिया बेहद लंबी थी। यानी डीआईपीपी से किसी भी स्टार्टअप को रजिस्ट्रेशन सर्टिफिकेट मिल जाता है, तो वह आईपीआर का फायदा उठा सकता है।
Source: Dainik bhaskar