एक तरफ जहाँ वाईब्रेंट गुजरात वैश्विक सम्मेलन के आठवें संस्करण समारोह के मौके पर एमएसएमई द्वारा लगभग 1600 मेमोरेंड़म (MoUs) पर हस्ताक्षर होने की उम्मीद है तो वहीँ राज्य में सिक (बीमार) एमएसएमई की संख्या उत्तर प्रदेश व महाराष्ट्र के बाद सबसे अधिक है।
राज्य सरकार अब इनके रिवाइवल की दिशा में कुछ व्यवहारिक कदम उठाने की तैयारी कर रही है, जिसमें सरकार ने सिक एमएसएमई की संख्या को कम करने के लिए एक वेबसाइट शुरु करने की योजना बना रही हैं। जिसमें ये इकाइयां (Units) खुद को बिक्री के लिए सूचीबद्ध कर सकती हैं।
भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा लोकसभा के साथ शीतकालीन सत्र को दौरान साझा की गयी जानकारी के अनुसार अकेले साल 2016 में ही राज्य में बीमार इकाइयों की संख्या 42500 दर्ज हुई है जबकि उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र में यह संख्या 95,989 व 52,576 है।
गुजरात औद्योगिक विकास निगम की वाइस चेयरमैन और प्रबंध निदेशक (जीआईडीसी) डी थरा का कहना है, “राज्य सरकार एमएसएमई को गति देने के लिए प्राइवेट पार्टनर के साथ मिलकर एक वेबसाइट बनाने की योजना बना रही है। जहाँ इकाइयाँ को खुद का आधिकारिक एजेंसियों द्वारा संकलित डाटा जैसे पूंजी आदि, सूचीबद्ध कर सकती हैं। वेंचर कैपिटलिस्ट (पूंजीपतियों) या कोई अन्य इच्छुक उद्यमी फिर उस डाटा को प्राप्त कर सकेगा और अगर उसे उस इकाई में कोई दिलचस्पी है तो वो डील कर सकता है। यह “बिज़नेस फॉर सेल” तरीके की वेबसाइट होगी जिससे सीधे तौर पर एमएसएमई को एक प्लेटफार्म मिलेगा। ”
उन्होंने कहा कि एमएसएमई वेबसाईट के रखरखाव के लिए ऐजेंसियों को शुल्क दे सकती है। प्रोजेक्ट के अगले कुछ महीनों में पूरा होने की संभावना है।
लेकिन सबसे प्रमुख समस्या ये है कि अधिकतर एमएसएमई इकाइयाँ रिवाइवल के योग्य ही नहीं हैं जिससे कि इन्वेस्टर्स को उनमें कोई रूचि नहीं होगी। मार्च 2016 में राज्य में सिक एमएसएमई की संख्या 42500 थी जिनमें से सिर्फ 6000 लघु उद्योग ही सही प्रकार से कार्य कर रहे थे।
हालाँकि वाइब्रेंट गुजरात समिट में बड़ी संख्या में एमएसएमई गुजरात में निवेश करने के अपने इरादे को व्यक्त कर रहे हैं। 2015 के वाईब्रेंट गुजरात समिट में कुल 21300 मेमोरेंडम पर हस्ताक्षर किया गया था जिनमें से 17,000 लघु इकाइयाँ थी।
लेकिन राज्य सरकार के लिए बड़ी चिंता की बात ये है कि उपयुक्त प्रयासों के बावजूद आरबीआई के आंकड़ो के अनुसार राज्य में बीमार एमएसएमई इकाइयों की संख्या बढ़ रही है। यह संख्या साल 2013 में 20,452 थी जो 2014 में 4800 और वर्ष 2015 में 40,003 हो गयी।
राज्य सरकार ने साल 2015 में लघु उद्योगों को प्रोत्साहन के लिए औद्योगिक नीतियों की घोषणा की है, जिसमें बैंकों द्वारा ऋण में वित्तीय सहायता भी आदि शामिल है।