बिना कार्ड या पॉइंट ऑफ सेल्स (पीओएस) मशीनों के कैशलेस भुगतान को बढ़ावा देने के मकसद से लाए गए ‘भारत-क्यूआर’ को छोटे कारोबारियों के लिए काफी मुफीद माना जा रहा है।
कहा यह भी जा रहा है कि सरकारी मध्यस्थता के चलते एक बार चलन में आने के बाद यह बाजारों से डिजिटल वॉलेट्स का सफाया कर सकता है, लेकिन व्यापारी लंबी अवधि में इसकी ट्रांजैक्शन लागत और पैसे की सुरक्षा को लेकर अब भी सवाल उठा रहे हैं।
डिजिटल भुगतान के मैकेजनिज्म पर नीति आयोग के साथ कई दौर की बैठकों में शामिल रहे ट्रेड संगठन कैट के प्रेसिडेंट बी सी भरतिया ने बताया, “छोटे दुकानदारों, स्ट्रीट वेंडर्स, ऑटो-टैक्सी चालकों सहित खुदरा क्षेत्र के लिए यह भविष्य का भुगतान जरिया साबित हो सकता है। यह कई मायनों में डिजिटल वॉलेट्स से ज्यादा मुफीद और सुरक्षित है, लेकिन अब भी सरकार को चार्जेज और सेफ्टी नॉर्म्स पर पारदर्शिता दिखानी होगी।”
उन्होंने बताया कि यह बाजार में मौजूद सभी वॉलेट्स से इस मायने में अलग है कि इसका बारकोड मैट्रिक्स मास्टरकार्ड, वीजा, अमेरिकन एक्सप्रेस सभी पेमेंट कंपनियों के गेटवे को सपोर्ट करता है। ऐसे में कोई भी बैंक एकाउंट होल्डर वेंडर के क्यूआर स्टिकर से अपना फोन स्वाइप कर ट्रांजैक्शन कर सकता है।
हालांकि ग्राहक को अपना डेबिट कार्ड उस बैंक के मोबाइल ऐप के जरिए मैप करना होगा और यह साफ नहीं है कि क्या बैंक आगे चलकर एमडीआर की तरह कोई नॉमिनल चार्ज इस पर लगा सकते हैं या नहीं।
नीति आयोग के सीईओ अमिताभ कांत ने मंगलवार को नोटबंदी के बाद से डिजिटल भुगतान की स्थिति पर मीडिया ब्रीफिंग के दौरान बताया कि नवंबर से पहले तक देश में 8 लाख पीओएस थे, जो अब बढ़कर 28 लाख हो गए हैं।
हालांकि डिजिटल वॉलेट और दूसरे मोड में कैशलेस पेमेंट का दायरा इससे कई गुना ज्यादा बढ़ा है, लेकिन अभी इसका आकलन हो रहा है कि वह कितना ठोस है। उन्होंने बताया कि नोटबंदी के बाद शुरू की गईं इंसेंटिव स्कीमों से बड़े पैमाने पर छोटे कारोबारी डिजिटल मोड में शिफ्ट हुए हैं। इसलिए अब सरकार ने किफायत और सहूलियत पर फोकस बढ़ाया है।
1 अप्रैल से पीओएस ट्रांजैक्शन पर लगने वाले मर्चेंट डिस्काउंट रेट में भी कटौती होने जा रही है, लेकिन ज्यादातर छोटे ट्रेडर अब भी पूरी तरह मुफ्त और सुविधाजनक माध्यम चाहते हैं। पेटीएम जैसे वॉलेट के रातोंरात लाखों ग्राहक बन जाने की यह सबसे बड़ी वजह थी।
Source: The Economic Times