‘मेक इन इंडिया’ के बाद अब ‘बाय इन इंडिया’ पर होगा जोर


सरकार पिछले कुछ समय में तेजी से अपने रुख में बदलाव लाती दिख रही है। ‘मेक इन इंडिया’ पहल का पहले जोर-शोर से प्रचार किया गया लेकिन अब ‘बाय इन इंडिया’ को खूब बढ़ावा दिया जा रहा है। ऐसा माना जा रहा है कि अर्थव्यवस्था के कई अहम क्षेत्रों को समाहित करते हुए एक व्यापक […]


make-in-india-l-PTIसरकार पिछले कुछ समय में तेजी से अपने रुख में बदलाव लाती दिख रही है। ‘मेक इन इंडिया’ पहल का पहले जोर-शोर से प्रचार किया गया लेकिन अब ‘बाय इन इंडिया’ को खूब बढ़ावा दिया जा रहा है।

ऐसा माना जा रहा है कि अर्थव्यवस्था के कई अहम क्षेत्रों को समाहित करते हुए एक व्यापक नीति पर काम किया जा रहा है, जिसमें घरेलू खरीद को तवज्जो दी जाएगी।

एक सूत्र ने बताया कि प्रधानमंत्री कार्यालय ने हाल ही में प्रस्तावित नीति की रूपरेखा पर बैठक भी की थी। यह नीति जल्द ही आ सकती है।

अर्थशास्त्रियों का कहना है कि इस नीति में ऐसे क्षेत्रों को शामिल किया जा सकता है, जिसमें सरकार सबसे बड़ी खरीदार है। ऐसे क्षेत्रों में इंजीनियरिंग, मशीनरी और कागज आदि शामिल हैं। सीमेंट भी ऐसा ही एक क्षेत्र है लेकिन इसमें अधिकांश खपत की आपूर्ति घरेलू विनिर्माण के जरिये ही की जाती है।

मामले के जानकार एक सूत्र ने कहा कि सरकार ने हाल ही में पेट्रोलियम और स्टील क्षेत्र में घरेलू खरीद को तरजीह देने का निर्णय किया है, लेकिन नई नीति में ‘स्वदेशी’ का दायरा ज्यादा व्यापक होगा। यह कदम ऐसे समय में उठाया जा रहा है जब अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया जैसे कई विकसित देशों में आर्थिक राष्ट्रवाद जोर पकड़ रहा है।

अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप का संरक्षणवादी रुख, खासकर एच1बी वीजा पर उनके कदम से आईटी उद्योग पर खासा असर पड़ा है। एक अधिकारी ने बताया कि सरकार ऐसी नीति लेकर आएगी जिसमें स्थानीय स्तर पर खरीद को बढ़ावा मिलेगा। उन्होंने कहा, ‘घरेलू खरीद को तरजीह देने पर हमेशा से ही विवाद होता रहा है  और विश्व व्यापार संगठन में इसे चुनौती दी जा सकती है।’

हालांकि केयर रेटिंग्स के मुख्य अर्थशास्त्री मदन सबनवीस ने कहा कि ऐसी नीति में कुछ पात्रता का भी ध्यान रखा जा सकता है। सबनवीस ने कहा कि घरेलू खरीद को तरजीह लघु-अवधि की नीति के तौर पर दी जा सकती है, जो आदर्श रूप से एक साल से अधिक नहीं होनी चाहिए। हालांकि अगर यह लागू होती है तो अन्य देशों से सस्ते उत्पादों की कम लागत का लाभ उठाने से देश वंचित रह सकता है।

वैसे, इसकी व्याख्या ‘अप्रत्यक्ष संरक्षण’ या ‘वर्चुअल संरक्षण’ के तौर पर की जा सकती है और संभव है कि इसे विश्व व्यापार संगठन में चुनौती का सामना न करना पड़े।

घरेलू खरीद को तरजीह देने की किसी भी नीति से पर्याप्त संख्या में रोजगार का भी सृजन होगा, जो नरेंद्र मोदी सरकार का अहम एजेंडा भी है। मेक इन इंडिया और स्टार्टअप इंडिया जैसी योजना को बढ़ावा देने के बाद भी रोजगार सृजन सरकार के लिए समस्या बनी हुई है।

वाणिज्य एवं उद्योग राज्यमंत्री निर्मला सीतारामन ने हाल ही में कहा कि सरकार सितंबर तक औद्योगिक क्रांति 4.0 पर नीति लेकर आएगी, जिससे विनिर्माण कंपनियों और रोजगार सृजन में मदद मिलेगी। घरेलू खरीद में तरजीह पर समग्र नीति आने से पहले सरकार ने बीते दो माह में इस दिशा में कुछ पहल की घोषणा की है। इस माह की शुरुआत में बुनियादी परियोजनाओं के लिए घरेलू लौह एंव इस्पात की खरीद को तवज्जो देने की नीति लेकर आई थी।

इसके साथ ही इलेक्ट्रॉनिक्स एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय ने मेक इन इंडिया को बढ़ावा देने के लिए चरणबद्घ तरीके से विनिर्माण कार्यक्रम की घोषणा की है। अप्रैल में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने सार्वजनिक तेल एवं गैस कंपनियों द्वारा खरीद में घरेलू विनिर्माताओं को प्राथमिकता देने की नीति को मंजूरी दी है।

(निवेदिता मुखर्जी और मेघा मनचंदा)

Source: Business Standard

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