आम तौर पर ग्रामीण उद्योगों और खादी इकाइयों को बहुत बड़ा नहीं माना जाता, लेकिन पिछले साल इन दोनों ने तो कमाल ही कर दिया। ग्रामीण उत्पादों और खादी की बिक्री पहली बार 50,000 करोड़ रुपये के पार पहुंच गई।
खादी की बिक्री बढ़ाने पर सरकार भी खासा जोर दे रही है, लेकिन हैरत की बात यह है कि ग्रामीण उद्योगों में तैयार शहद, साबुन, श्रृंगार के सामान, फर्नीचर और जैविक खाद्य सामग्रियों की मांग में भारी तेजी देखने को मिली है। खास बात यह है कि कई ग्रामीण उद्योगों का संचालन महिलाएं कर रही हैं।
खादी और ग्रामोद्योग आयोग (केवीआईसी) के जुटाए आंकड़े बताते हैं कि पिछले वित्त वर्ष के दौरान ग्रामोद्योग उत्पादों की बिक्री 24% बढ़कर 50,000 करोड़ रुपये के आसपास पहुंच गई। इसी तरह, खादी उत्पादों की बिक्री भी 33 प्रतिशत बढ़कर 2,005 करोड़ रुपये तक पहुंच गई जो वित्त वर्ष 2015-16 में 1,635 करोड़ रुपये थी।
टर्नओवर के मामले में तो खादी एवं ग्रामोद्योग ने तो रोजमर्रा के सामान बनानेवाली देश की कई कंपनियों को पीछे छोड़ दिया। अकेले खादी की बिक्री भी बॉम्बे डाइंग और रेमंड जैसे मशहूर ब्रैंड से मुकाबला कर रही है। हालांकि, इन कंपनियों ने वित्त वर्ष 2016-17 के अपने आंकड़ों का खुलासा नहीं किया है।
अब आयोग का लक्ष्य खादी की बिक्री वित्त वर्ष 2018-19 तक दोगुनी कर 5,000 करोड़ रुपये करने की है।
खादी और ग्रामीण उत्पादों को बढ़ावा देने के लिए सरकार ने तो अपनी भूमिका अदा की ही है, ग्राहकों ने भी इस ओर दिलचस्पी लेनी शूरू कर दी है। यहां तक कि विदेशी ग्राहकों की संख्या भी बढ़ रही है।
ब्रैंड एक्सपर्ट हरीश बिजूर कहते हैं, ‘पहले खादी को राजनीति से जुड़े लोग ही तवज्जो देते थे, वह चाहे कुर्ता हो या टोपी। चूंकि अब आम ग्राहक भी प्राकृतिक उत्पाद पसंद करने लगे हैं, इसलिए आयोग की बल्ले-बल्ले हो रही है।’
बिजूर के मुताबिक, खादी-ग्रामोद्योग उत्पादों की बिक्री में उछाल अंतरराष्ट्रीय स्तर पर देखने को मिल रही है। उन्होंने बताया कि 21 विदेशी बाजारों में सर्वे के दौरान पाया गया कि वहां योगा के अलावा खादी ही सबसे पसंदीदा भारतीय ब्रैंड है। इसीलिए, आयोग अपने उत्पाद निर्यात करने की संभावना तलाशने लगा है।
केवीआईसी के चेयरमैन विनय कुमार सक्सेना ने कहा, ‘अभी हम सीधा निर्यात नहीं कर रहे, लेकिन जल्द ही शुरू करनेवाले हैं। इससे खादी को अंतरराष्ट्रीय ब्रैंड बनने में मदद मिलेगी।’
इंडस्ट्री एक्पर्स्ट्स आयोग की सफलता का श्रेय कई देसी और अंतरराष्ट्रीय फैशल डिजाइनरों को देते हैं जो टिकाऊ और प्राकृतिक कपड़ों को तवज्जो देते हैं।
खादी को बढ़ावा मिलने में आज की युवा पीढ़ी का भी योगदान है। दअसल, आज के युवा की सोच यह है कि वो जो कपड़े पहन रहे हैं, क्या उनसे किन लोगों को और कितना रोजगार मिल रहा है?
चूंकि खादी कपड़े हाथ से बुने होते हैं और ग्रामोद्योग के उत्पाद मुख्य रूप से ग्रामीण इलाकों के कारीगरों द्वारा तैयार किए जाते हैं, इसलिए युवा ग्राहकों को इन्हें खरीदकर संतुष्टी मिलती है।
रिटेल कंसल्टंसी टेक्नोपैक के संस्थापक अरविंद सिंघल कहते हैं, ‘केवीआईसी का मॉडल बिल्कुल निराला है। वह सरकारी स्टोरों के साथ-साथ दूसरे खुदरा दुकानों के जरिए भी बिक्री करता है।’
उन्होंने कहा, ‘यह देश के कम आंकी जानेवाली कंपनियों में एक है जिसमें बहुत संभावनाएं हैं।’ हाल के वर्षों में उत्पादन की वृद्धि दर सुस्त पड़ी है। ऐसे में पिछले साल खादी का उत्पादन 31 प्रतिशत बढ़कर 1,396 करोड़ रुपये तक पहुंच गया जबकि ग्रामोद्योग उत्पादों में 23 प्रतिशत की वृद्धि हुई और यह 41,110 करोड़ रुपये तक पहुंच गया।
(जॉन सरकार/सिद्धार्थ)
Source: Economic Times