लीज फाइनेंसिंग और सिक्युरिटाइजेशन ट्रेडिंग जुलाई से महंगा हो सकता है। ऐसा इसलिए है क्योंकि दोनो बिजनेस अब जीएसटी के दायरे में आएंगे। जीएसटी के नए प्रॉविजन को अगर लागू किया जाता है, तो इसका सीधा असर छोटे कारोबारियों पर कैपिटल इन्वेस्टमेंट जुटाने से लेकर एनबीएफसी पर भी होगा।
क्या हैं नए प्रावधान
फाइनेंस इंडस्ट्री डेवलपमेंट काउंसिल के चेयरमैन रमन अग्रवाल ने बताया कि लीज फाइनेंसिंग पर जीसएटी लगाने का प्रावधान किया गया है। यह हमारे लिए बड़ा सेटबैक है। इसका सीधा असर छोटे कारोबारियों पर पड़ेगा। जीएसटी लगने से फाइनेंस कंपनियां लीज फाइनेंस से दूर होंगी।
लीज फाइनेंस का क्या है फायदा
लीज फाइनेंस का सबसे बड़ा फायजा स्टार्टअप और छोटे कारोबारियों और किसानों को मिल सकता है। ऐसा इसलिए है कि इसके तहत बिजनेस के लिए उपकरण खरीदने से लेकर एग्रीकल्चर के लिए जरूरी उपकरण लीज पर लिया जा सकता है। यानी कारोबारी को उपकरण खरीदने के लिए एकमुश्त रकम नहीं लगानी पड़ती है। वह ऑफिस स्पेस से लेकर मशीनरी आदि लीज पर ले सकता है। जिसके बदले में उसे हर महीने एक रकम चुकानी पड़ती है।
अग्रवाल के अनुसार जीएसटी लगने से यह लीज करने वाली कंपनियों के लिए महंगा हो जाएगा। ऐसे में सरकार को इसे जीएसटी के दायरे से बाहर रखना चाहिए।
सिक्युरिटाइजेशन बिजनेस पर भी जीएसटी
अग्रवाल के अनुसार इसी तरह सिक्युरिटाइजेशन बिजनेस पर भी जीएसटी लगाने का प्रावधान किया गया है। इसका असर भी नेगेटिव होगा। ऐसा इसलिए है क्योंकि फाइनेंस कंपनियां बैंकों को अपने अच्छे एसेट बेच कर फंड जुटाती है। अभी तक इस पर कोई टैक्स नहीं लगता है।
जीएसटी के तहत सिक्युरिटाइजेशन को भी लाया जाएगा। ऐसे में इस बात का डर है कि सिक्युरिटाइजेशन रूट खत्म हो सकता है।
Source: Money Bhaskar