GST: टेक्सटाइल व फुटवियर पर जीएसटी की दरों को लेकर फंसा पेंच


अधिकांश वस्तुओं और सेवाओं के लिए जीएसटी की दरें तय भले ही हो गई हों, मगर टेक्सटाइल और फुटवियर जैसे अहम उत्पादों पर जीएसटी की दरों पर पेंच फंस गया है। कपास उत्पादक व टेक्सटाइल उद्योग के गढ़ माने जाने वाले राज्य इस मुद्दे को लेकर अपनी मांगों पर अड़ गए हैं। यही वजह है […]


GST-TAXअधिकांश वस्तुओं और सेवाओं के लिए जीएसटी की दरें तय भले ही हो गई हों, मगर टेक्सटाइल और फुटवियर जैसे अहम उत्पादों पर जीएसटी की दरों पर पेंच फंस गया है। कपास उत्पादक व टेक्सटाइल उद्योग के गढ़ माने जाने वाले राज्य इस मुद्दे को लेकर अपनी मांगों पर अड़ गए हैं।

यही वजह है कि जीएसटी काउंसिल की श्रीनगर में हुई 14वीं बैठक में इस पर फैसला नहीं हो पाया है। माना जा रहा है कि काउंसिल की तीन जून को होने वाली बैठक में इन पर वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) की दरों के संबंध में कोई निर्णय हो सकता है।

सूत्रों का कहना है कि टेक्सटाइल उत्पादों पर जीएसटी दरों को लेकर राज्यों के बीच कई बिंदुओं पर मतभेद हैं। सबसे बड़ी चुनौती ब्रांडेड और गैर-ब्रांडेड गारमेंट्स पर जीएसटी की उपयुक्त दर तय करने की है। कपास उत्पादक राज्य जैसे गुजरात और महाराष्ट्र राज्य अपने यहां टेक्सटाइल उद्योग के हितों को ध्यान में रखते हुए अपना रुख काउंसिल की बैठकों में रखा है। हालांकि टेक्सटाइल उत्पादों पर जीएसटी की दर मौजूदा प्रभावी कर से अधिक नहीं होगी।

दरअसल सात चीजें ऐसी हैं, जिन पर अभी तक जीएसटी की दरें तय नहीं हुई हैं। इनमें सबसे प्रमुख टेक्सटाइल ही है। इसके अलावा तेंदू पत्ता, बीड़ी, बिस्कुट, फुटवियर और सोना-चांदी जैसी कीमती धातुएं भी इनमें शामिल हैं। कपड़े के बाद फुटवियर दूसरा क्षेत्र है जिस पर सहमति नहीं बन पाई है।

सूत्रों का कहना है कि उत्तर प्रदेश सरकार गरीबों के इस्तेमाल में आने वाले जूता-चप्पलों पर जीएसटी की दर शून्य या न्यूनतम रखना चाहती है। यही वजह है कि राज्य ने काउंसिल की बैठक में दलील दी है कि अभी राज्य सरकार 300 रुपये से कम मूल्य के जूता-चप्पलों पर वैट नहीं वसूलती है। इसलिए यही व्यवस्था जीएसटी लागू होने के बाद भी जारी रहनी चाहिए।

सरकार रोटी, कपड़ा और मकान की प्राथमिकता को ध्यान में रखकर जीएसटी की दरें तय करने की कोशिश कर रही है। अधिकांश आवश्यक खाद्य वस्तुओं को जीएसटी के दायरे से बाहर रखकर इस दिशा में काफी हद तक कदम बढ़ाया जा चुका है। अब बारी कपड़े के लिए जीएसटी दरों की ऐसी संरचना तय करने की है कि जिससे आम लोगों की जेब पर भी इसका असर न हो। साथ ही, बड़े पैमाने पर रोजगार देने वाले टेक्सटाइल उद्योग को भी प्रोत्साहन मिलता रहे।

Source: Jagran.com

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