GST/Textiles: कपड़ा उद्योग के ऊपर जीएसटी को लेकर पूरी कहानी


6 लाख 90 हजार उद्यमियाें का, हर दिन 4 करोड़ मीटर कपड़े के उत्पादन का और 300 करोड़ रुपए प्रति दिन के कारोबार का शहर। आज एक बड़े ट्रांजीशन के दौर से गुजर रहा है। यह बदलाव है जीएसटी यानी गुड्स एंड सर्विस टैक्स का। देशभर में व्यापारी संघों और संस्थाओं ने सरकार से टेक्सटाइल […]


Textile-GST6 लाख 90 हजार उद्यमियाें का, हर दिन 4 करोड़ मीटर कपड़े के उत्पादन का और 300 करोड़ रुपए प्रति दिन के कारोबार का शहर। आज एक बड़े ट्रांजीशन के दौर से गुजर रहा है। यह बदलाव है जीएसटी यानी गुड्स एंड सर्विस टैक्स का।

देशभर में व्यापारी संघों और संस्थाओं ने सरकार से टेक्सटाइल पर 5 फीसदी जीएसटी लगाने की मांग की है। लेकिन संभावना 12 फीसदी टैक्स की है।

दरअसल सरकार की एक रिसर्च के अनुसार कपड़े पर औसतन 10.20 टैक्स लगता है और सरकार इससे कम टैक्स नहीं लेगी। ऐसे में टेक्सटाइल इंडस्ट्री 12 फीसदी जीएसटी के दायरे में आ सकता है। हालांकि यह 3 जून या उसके बाद तय होगा।

एक्सपर्ट्स के अनुसार अगर वर्तमान और जीएसटी में एक सीधा फर्क है कि अभी तक सिर्फ यार्न पर 12.5 फीसदी एक्साइज और 5 फीसदी वैट लगता है। इसके बाद ग्रे से फिनिश कपड़ा बनने तक कोई टैक्स नहीं है। सिर्फ सिलाई की हुई चीजों जैसे कुर्ता, शर्ट, पेंट आदि पर फिर 5 फीसदी टैक्स लगता है।

लेकिन इसमें यार्न के बाद टैक्स की चेन टूट जाती है, जिससे कोई टैक्स क्रेडिट या रिफंड की गुंजाइश नहीं रहती। इससे यार्न में जुड़ा वैट भी लागत का हिस्सा हो जाता है और दोबारा वैट लगने पर पूरी लागत पर टैक्स लगता है। यानी टैक्स पर टैक्स।

जीएसटी में यार्न बनाने से लेकिर हर तरह की प्रोसेसिंग में टैक्स लगेगा यानी जितनी बार उत्पाद में वैल्यू एडिशन होगा, उतनी बार टैक्स लगेगा। लेकिन पिछला दिया हुआ टैक्स लागत में शामिल नहीं होगा, हर प्रोसेस में यह टैक्स क्रेडिट के रूप में व्यापारी को वापस मिलता चला जाएगा।

ऐसा होने से व्यापारी को कपड़ा सस्ता पड़ेगा। लेकिन क्रेडिट का फायदा चूंकि सिर्फ व्यापारी को होगा और उपभोक्ता हर प्रोसेस के टैक्स की वसूली होगी तो उपभोक्ता के लिए कपड़ा महंगा होगा।

हर यूनिट को चाहिए होंगे अकाउंटेंट यानी लाखों रोजगार, व्यापारी की रेटिंग से बंद होगी ठगी

सबसे बड़े कपड़ा उद्योग केन्द्रों में से एक सूरत में टेक्सटाइल इंडस्ट्री से जुड़े 6.90 लाख व्यापारी हैं। जीएसटी में हर दिन का हिसाब ऑनलाइन होगा। अकाउंटेंट यह करेंगे। यानी 20 लाख रुपए से अधिक का कारोबार करने वाले सभी व्यापािरयों को अकाउंटेंट रखना होगा। सूरत में ऐसे आधे भी व्यापारी मानें तो 3.45 लाख अकाउंटेंट चाहिए। यहां लगभग हर तीसरे दिन ठगी का मामला सामने आता है। ज्यादातर मामले पेमेंट न करने के होते हैं।

जीएसटी के तहत किसी भी व्यापारी का नंबर डालकर देखा जा सकेगा, उसका ट्रैक रिकॉर्ड क्या है और उसकी रेटिंग भी तय होगी। इससे उससे कारोबार होगा जो समय पर पेमेंट करते हों, बिलिंग करते हो और टैक्स क्रेडिट लेते हों। ऐसे में ठगी के मामले खत्म हों जाएंगे।

पांच स्तर पर बदलेगी व्यापारी की कार्यप्रणाली

1- यार्न से फिनिश्ड कपड़ा बनाने तक यदि पांच व्यापारियों के यहां से गुजरता है और वैल्यू एडिशन होता है तो पांचों को हर दिन खरीद-बेचान के बिल बनाने होंगे। एक भी व्यापारी ऐसा नहीं करता है तो टैक्स क्रेडिट रुक जाएगा।

2- पिछले माह के सभी बिलों की एक एक्सेल शीट बनेगी, जिसे 10 तारीख तक अपलोड करना होगा, यही शीट व्यापारी के लिए मासिक रिटर्न भरने का आधार भी बनेगी।

3- 11 तारीख को व्यापारी के बेचान और खरीदने वाले के बिलों का मिलान ऑनलाइन होगा। बिल नंबर से बिल नंबर मैच होंगे, इससे पता चलेगा कि गड़बड़ी कहां हुई।

4- 15 तारीख तक खरीदारी के बिल अपलोड करने होंगे, अगर कोई व्यापारी भूल जाता है और साइकिल पूरी नहीं होती है तो दूसरा व्यापारी उसका बिल चढ़ा सकता है।

5- 20 लाख रुपए से अधिक कारोबार वालों को साल में 13 रिटर्न भरनी हैं। हर महीने के लिए एक रिटर्न भरना होगा और फिर साल के अंत में सालाना रिटर्न भी दाखिल करना अनिवार्य होगा।

ग्राउंड रियलिटी : असंगठित हिस्सा इनपुट क्रेडिट में अवरोध

जीएसटी लगने पर असली विवाद इनपुट क्रेडिट को लेकर होगा। अपैरल एक्सपोर्ट प्रमोशन काउंसिल (एईपीसी) के पूर्व चेयरमैन ए शक्तिवेल ने कहा, ‘हम इस बात पर स्पष्टता का इंतजार कर रहे हैं कि अगर ब्रांडेड परिधानों पर 18 फीसदी कर लगेगा तो किस तरह का इनपुट क्रेडिट दिया जाएगा।’

यह मामला इसलिए महत्वपूर्ण हो जाता है क्योंकि कपड़ा उद्योग का ज्यादातर हिस्सा असंगठित है और यह इनपुट टैक्स क्रेडिट के प्रवाह में अवरोध पैदा कर रहा है।

इसकी वजह यह है कि अगर पंजीकृत करदाता असंगठित स्रोतों से इनपुट्स खरीदते हैं तो उन्हें क्रेडिट नहीं मिलता है। कपड़ा उद्योग की एक अन्य चिंता अनुपालना का मसला है। अगर कर की दर ऊंची रखी गई तो अनुपालना के हालात और खराब होंगे।

सीएआईटी के महासचिव प्रवीण खंडेलवाल ने कहा कि कोई ब्रांड करोड़ों डॉलर का डिजाइन हाउस हो सकता है और कोई अपने ब्रांड के तहत परिधान बेचने वाला छोटा विनिर्माता। अगर सरकार छोटे विनिर्माता से उतना ही जीएसटी वसूलती है तो परिधान विनिर्माण से जुड़े लघु एवं मझोले उद्योग प्रभावित होंगे।

खत्म हो जाएगा कच्चे-पक्के का चक्कर

सूरत के लिए जीएसटी ज्यादा समस्याओं वाला होगा। चूंकि कपड़े पर आज तक कोई भी डायरेक्ट टैक्स नहीं था, इसलिए जीएसटी पूरी तरह कारोबारियों के लिए नई व्यवस्था जैसा है। लेकिन बड़े फायदे के लिए छोटी परेशानियां उठानी ही पड़ती हैं, ऐसा ही जीएसटी के साथ भी है। इसके कई लाभ होंगे।

व्यापार बढ़ेगा, चीजें सस्ती होंगी, सभी राज्यों में समान कर होगा, अकाउंटिंग ऑनालाइन होगी और कच्चे-पक्के का चक्कर खत्म हो जाएगा। ज्यादातर छोटे व्यापारी टैक्स रिटर्न और सरकारी झंझटों से भी बचना चाहते हैं।

जीएसटी से यह आसान हो जाएगा। क्रेडिट सीधे अकाउंट में आएगा। ग्रेडिंग से अच्छे या खराब व्यापारी की पहचान आसान हो जाएगी। कुछ चीजें नुकसानदायक है। जैसे टैक्स का भुगतान तुरंत करना होगा, चाहें पेमेंट आया हो अथवा नहीं। इससे पूंजी की लागत बढ़ेगी। हर महीने रिटर्न भरने का झंझट। अच्छे अकाउंटेंट की कमी है, अब इनकी जरूरत और बढ़ जाएगी।
– जैसा कि राजेश मालानी, सीए, आरआरए एंड कंपनी ने बताया

कपड़े पर आज तक कोई टैक्स नहीं था, अब जीएसटी आने से बुरा असर नहीं पड़ेगा?

कपड़े पर टैक्स न होना एक मिथक है। इसे समझना होगा। कपड़ा बनने के लिए जो इसका राॅ मैटेरियल है यानी कि यार्न उस पर 12.5 फीसदी एक्साइज लगता है तथा साथ ही साथ 5 फीसदी वैट भी लगता है। मैन्यूफैक्चरर से वीवर तक आते-आते एक्साइज तथा वैट दोनों लगते हैं। वीवर फिर इस टैक्स को लागत में शामिल करके व्यापारी को दे देता है। इसलिए ऐसा कहना कि कपड़े पर कोई टैक्स नहीं लगता ठीक नहीं है। रेडीमेड गारमेंट्स पर तो अभी भी वैट लगता ही है, ऐसे ही अब जीएसटी लगेगा।

यदि रॉ मैटेरियल पर टैक्स लगता है तो जीएसटी में किस हिसाब से टैक्स लगेगा??

अभी तक यार्न मैन्यूफैक्चरर डीलर को एक्साइज तथा वैट लगाकर देते थे और डीलर वीवर को वैट लगाकर देता था, लेकिन वीवर व्यापारी को अलग से टैक्स लगा बिल नहीं देता था। जीएसटी के बाद वीवर को भी व्यापारी को अलग से टैक्स लगाकर बिल देना होगा और व्यापारी जो वैल्यू एडीशन कराकर माल बेचेगा उसे भी जीएसटी लगाकर माल बेचना होगा।

कपड़ा कई प्रोसेस से बनता है फिर जीएसटी क्यों?

राज्य सरकार कपड़ा उत्पादन पर वैट वसूल नहीं करती है, लेकिन कपड़ा बनाने के लिए इनपुट रॉ मैटिरीयल तक टैक्स लगता है और वह टैक्स आगे पास आॅन नहीं होने की वजह से ब्लॉक हो जाता है। दूसरा सरकारों के पास टैक्सटाइल उत्पादन पर टैक्स नहीं होने की वजह से उत्पादन का कोई डाटा उपलब्ध नहीं रहता है। इंडस्ट्री के विकास के लिए डबल टैक्सेसन खत्म होगा और उचित डाटा उपलब्ध होगा तो सरकार को पाॅलिसी बनाने में आसानी होगी।

तो टेक्सटाइल पर जीएसटी से बर्डन बढ़ेगा?

जीएसटी रेट कपड़े पर कितना रहेगा उस पर निर्भर करेगा। टेक्सटाइल मिनिस्ट्री के अनुसार टेक्सटाइल उद्योग को नौ भागों में बांटा गया है। इसमें खादी, हैंडलूम, कॉटन, वुलेन, सिल्क, आर्ट एवं सिंथेटिक फाइबर, जूट, कारपेट वीविंग, रेडीमेड गारमेंट तथा मिसलिनियस टेक्सटाइल प्रोडक्ट्स शामिल हैं।

सामान्यत: जीएसटी रेट तय करने में आरएनआर( रेवेन्यू नेचुरल रेट) का बहुत बड़ा रोल रहता है। आरएनआर मतलब सरकार को पर्टिकुलर प्रोडक्ट पर कितना रेवेन्यू मिल रहा है। एक रिपोर्ट के अनुसार आर्ट सिल्क और सिंथेटिक फाइबर टेक्सटाइल पर सरकार को एक्साइज, वैट, सर्विस, इंट्री टैक्स, आॅक्ट्राई मिलाकर 10.20 प्रतिशत टैक्स मिलता है और यदि ऐसा होता है तो निश्चित रूप से कपड़ा व्यापार पर असर पड़ेगा।

कपड़ा व्यापारियों को कैसी तैयारी करनी होगी?

घबराने या पैनिक की बात नहीं है, कपड़े को छोड़ सभी एक्साइज और वैट का सिस्टम फॉलो करते ही थे। यार्न उत्पादक, डीलर तथा वितरक का एक्साइज एवं वैट में रजिस्ट्रेशन है। अब सिर्फ कपड़ा व्यापारियों को भी सिस्टम में आना होगा और अपने बुक्स ऑफ एकाउंट को निश्चित समय पर अनुशाषित रूप में तैयार करना है। जिन व्यापारियों का टर्नओवर 50 लाख से कम है एवं एक ही राज्य में व्यापार करते हैं तो वह कम्पोजिट स्कीम का फायदा ले सकते हैं।

इसमें तीन महीने में एक बार रिर्टन फाइल करना होगा, लेकिन सर्विस सेक्टर में कार्य करने वाले लोग तथा फर्मे एवं ऑनलाइन व्यापार करने वाले लोग इस स्कीम का फायदा नहीं ले पाएंगे। इसमें टोटल टर्नओवर पर सर्टेन परसेंटेज टैक्स भरना होगा।

रिर्टन फाइलिंग सिस्टम क्या रहेगा?

रेग्युलर डीलर को मासिक और कम्पोजिट स्कीम लेने वालों को तीन माह में रिटर्न भरना है।

Source: DainikBhaskar.com

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