हुनर को अगर कामयाबी के पंख मिल जाएँ तो उसकी उड़ान कहां तक जाएगी, यह मापना असंभव है। अब सवाल यह है कि यह पंख, हुनर या काबिलियत को देगा कौन?
भारत की जनसँख्या के लिहाज से सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश के अपने छोटे से शहर सीतापुर से दूर बंगलौर से डिजाइनिंग की पढ़ाई पूरी करने गयी नव्या अग्रवाल ने शायद यह बहुत पहले सोंच लिया था कि उनका सपना उन लोगों की मदद करना है जिनमें हुनर तो भरा है लेकिन उनके पास अवसर और संसाधनों की कमी है।
नव्या ऐेसी ही प्रतिभाओं की तलाश में निकल पड़ी जो उन्हें उनके ही शहर में मिल गयीं।
नव्या के बारे में मैं सिर्फ इतना कह सकती हूं कि जब मैंने उनकी सफलता की कहानी के संदर्भ में उनसे बात की तो उनके जबावों में एक ऐसा उत्साह, ऐसा प्रोत्साहन था जिसने मुझे उनकी सफलता में खोने पर मजबूर कर दिया।
कैसी शुरू की कंपनी, कैसे दिया लोगों को रोजगार
नव्या अपने शुरूआती सफ़र के बारे में कहती हैं कि साल 2013 में मात्र 23 साल की उम्र में उन्होंने I Value Every Idea (आईवीईआई) की नींव रखी थी। जिसका मतलब है कि आपके हर विचार का हम सम्मान करते हैं।
मात्र साढ़े तीन लाख रूपये की पूंजी के साथ कारोबार शुरू किया। मैंने अपने होम टाउन सीतापुर का दौरा किया औऱ अनेक कारीगरों से मिली जिसमें कारपेंटर्स प्रमुख थे। इन कारीगरों के पास योग्यता थी पर अवसर की कमी थी।
आईवीईआई ने इन कारीगरों के कौशल को निखारा और उसको नया रुप दिया। मैंने देखा कि इन कारीगरों के पास स्किल है पर फिर भी इनके परिवार अनेक परेशानियों का सामना कर रहे हैं जिसमें रुपये की कमी प्रमुख थी। बिना टेक्नोलॉजी की मदद के यह कारीगर लकड़ी की खूबसूरत वस्तुऐं बना रहे थे, बस इनके पास एक्सपोजर की कमी थी।
मैंने लकड़ी के साथ बेसिक मशीनरी की मदद से अपने कोर्स के दौरान काफी काम किया था। मैंने इन आर्टिज़न की हेल्प करने और अपने पैशन को बिजनेस में बदलने का निर्णय लिया जो कि सही साबित हुआ।
इन कारीगरों को एक रास्ता दिखाया जहाँ से ये अपनी मंजिल खुद ही देख सकते थे, और अर्बन इंडिया को मेक इन इंडिया में बदलने का फैसला लिया और इस पर काम किया।
स्किल इंडिया इनिशिएटिव को सही मायनों में ये कारीगर आगे बढ़ा रहे हैं। आज इनकी हस्तशिल्प कला को देखकर हर कोई हैरान है।
सफ़लता की सीढ़िया चढ़ती आईवीईआई, कई शहरों में खुले आउटलेट्स
आज उनकी कंपनी का टर्न ओवर करोड़ो में है। अब उनकी कंपनी के उत्पाद बैंगलूर, चेन्नई, मुंबई और हैदराबाद जैसे बड़े शहरों में भी मिलते हैं। आईवीईआई, बड़े ई-कॅामर्स प्लेटफार्म फ्लिपकार्ट, स्नैपडील, फैबफर्निश और अमेज़न की बेबसाईट पर भी अपने प्रोडक्ट्स को बेंचती है।
आईवीईआई की खुद की भी ई-कॅामर्स जैसी वेबसाइट है जहाँ से प्रोडक्ट्स ख़रीदे जा सकते हैं। आज लगभग 30 से भी ज्यादा शहरों में आईवीईआई के प्रोडक्ट्स मिलते हैं और अब विदेशों में भी इसकी पहचान हो रही है।
परेशानियों से लड़कर मिली ताक़त
कहते हैं कि असफ़लता ही सफ़लता को चमक देती है, नव्या को भी अपने स्टार्टअप को शुरु करने में अनेक चुनौतियों का सामना करना पड़ा। नव्या बताती हैं कि सबसे ज्यादा मुश्किल इन आर्टिज़न को इसके लिए मनाना और इनमें आत्मविश्वास पैदा करना था। लेकिन कुछ समय बाद कुछ कारीगर मेरे साथ काम करने के लिए राजी हुए। और इनकी सफ़लता को देखने के बाद और लोग भी मेरे साथ काम करने के लिए खुद ही आने लगे।
अब आस-पास के जिलों जैसे लखीमपुर खीरी, हरदोई आदि के भी कारीगर हमारे साथ काम कर रहे हैं, जिनमें बड़ी संख्या में महिलायें हैं। मै अब पुरे राज्य में कारीगरों को प्रोत्साहित कर रही हूँ।
सीख
नव्या ने SMEpost से अपने स्टार्टअप की सफ़लता के बारे बात करते हुआ कहा कि उनके स्टार्टअप की सफलता यही है कि जब वे लोगों को आई वेल्यू एवरी आईडिया के बारे में बताती हैं तो लोग कहते हैं कि वो इसे जानते हैं।
नव्या उन महिलाओं के लिए भी प्रेरणा है जो सोंचती है कि शादी के बाद अपना खुद का बिज़नस चलाना मुश्किल है। नव्या इस बात को पूरी तरह से नकारती है और कहती है कि मेरी शादी ने मुझे रुकने नहीं दिया। आज मैं एक बच्चे की मां भी हूं। मैं एक प्रोडेक्ट ग्राफिक डिजायनर हूं और आईवीईआई मेरा स्वाभिमान मेरी पहचान है।
नव्या की प्रेरणा
नव्या की मां अंशु अग्रवाल एक इंग्लिश टीचर है जो इन कारीगरों को एजूकेट भी करती हैं और इस वर्कशॅाप का अहम हिस्सा हैं। नव्या की प्रेरणा उनके पापा है जिन्होंने हमेशा उनसे यही कहा कि अगर आपमें कुछ करने की इच्छा है तो बिना डरे हुए उसे पूरा करें।
फ्यूचर विज़न
आईवीईआई का अगला कदम क्या होगा, इस सवाल पर नव्या का कहना कि…
“मोर आर्टिज़न, मोर डिजाइन, मोर हैप्पीनेस”
उनके अनुसार सक्सेस की परिभाषा खुद सफल होना है। नव्या सही मायनों में कुटीर उद्योग (MSMEs) को बढ़ावा दे रहीं हैं और इन उद्योगों के लिए एक मिशाल के तौर पर उभरी हैं।