नोटबंदी का नहीं होगा असर, चीन के करीब आ रहा है भारत: वर्ल्ड इकॉनमिक फोरम


नोटबंदी के बाद से भले ही पीएम नरेंद्र मोदी पर विपक्ष और आर्थिक विश्लेषक हमला बोल रहे हैं, लेकिन वर्ल्ड इकॉनमिक फोरम से उनकी लिए राहत की खबर आई है। ब्लूमबर्ग की रिपोर्ट के मुताबिक वर्ल्ड इकॉनमिक फोरम में प्रकाशित स्टडीज और सर्वे में कहा गया है कि भारत की इकॉनमी के प्रति दुनिया का […]


newnotes-1478677407नोटबंदी के बाद से भले ही पीएम नरेंद्र मोदी पर विपक्ष और आर्थिक विश्लेषक हमला बोल रहे हैं, लेकिन वर्ल्ड इकॉनमिक फोरम से उनकी लिए राहत की खबर आई है।

ब्लूमबर्ग की रिपोर्ट के मुताबिक वर्ल्ड इकॉनमिक फोरम में प्रकाशित स्टडीज और सर्वे में कहा गया है कि भारत की इकॉनमी के प्रति दुनिया का दृष्टिकोण बदल रहा है और चीन के मुकाबले अंतर कम हुआ है।

यह रिपोर्ट्स पीएम नरेंद्र मोदी को ऐसे वक्त में राहत देने वाली हैं, जब विपक्ष नोटबंदी के चलते उन पर इकॉनमी को पटरी से उतारने के आरोप लगा रहा है।

विश्लेषक भी कह रहे हैं कि 2 ट्रिलियन डॉलर यानी करीब 137 लाख करोड़ रुपये की इकॉनमी वाले भारत की अर्थव्यवस्था नोटबंदी से प्रभावित हो सकती है।

इसके साथ ही सरकार 1 फरवरी को बजट भी पेश करने वाली है। केंद्र सरकार ने इस साल बजट को करीब एक महीने पहले ही पेश करने का फैसला लिया है।

भारत की इकॉनमी पर क्या है दुनिया की राय
अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष के अनुसार नोटबंदी के चलते निकट भविष्य में इकॉनमी पर असर पड़ेगा, लेकिन लॉन्गटर्म में सुधार देखने को मिलेगा। आईएमएफ ने भारत के जीडीपी अनुमान को 7.6 से घटाकर 6.6 पर्सेंट कर दिया है।

अंतरराष्ट्रीय संस्था के रिसर्च डायरेक्टर मॉरी ऑब्स्टफेल्ड ने कहा, ‘जीडीपी अनुमान घटाने के बाद भी भारत की इकॉनमी मजबूत बनी रहेगी।’ उन्होंने कहा, ‘हम इस बात से सहमत हैं कि नोटबंदी के चलते इकॉनमी से अवैध ट्रांजैक्शंस पर लगाम कसने में मदद मिलेगी।’

आर्थिक सुधारों में तेजी चाहते हैं कारोबारी
2011 के मुकाबले दुनिया के चीफ एग्जिक्यूटिव्स का भारत की इकॉनमी को लेकर उत्साह कमजोर हुआ है। इनका मानना है कि भारत में सांगठनिक सुधार उतनी तेजी से नहीं हो पाए हैं, जितनी जरूरत है। कुल 79 देशों के 1400 सीईओज ने यह राय दी है।

मार्केट में बनी हुई है मांग
भारत की इकॉनमी में भरोसे की बड़ी वजह यह है कि पीएम मोदी की ओर से नोटबंदी के फैसले के बाद भी भारत में कन्जयूमर डिमांड अब भी एशिया में सबसे अधिक बनी हुई है।

मास्टरकार्ड सर्वे के मुताबिक जून-दिसंबर 2016 में कन्जयूमर सेंटिमेंट में 2.4 पॉइंट्स की कमी आई थी, लेकिन अब बाजार उम्मीदों से भरा है।

तेज नीतियां
पॉलिसी मेकर्स को नीतियों के निर्माण के लिए श्रेय देना होगा। इकॉनमिस्ट के सर्वे में शामिल 20 पर्सेंट लोगों ने माना है कि उन्हें भारत की इकॉनमी से चीन से भी अधिक उम्मीदें हैं।

हालांकि इतने ही लोगों ने कहा कि कॉर्पोरेट सेक्टर की उम्मीदें भारत को लेकर अब भी काफी कमजोर हैं।

Source: Navbharat Times

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