इसके साथ ही बैंकिंग रेगूलेशन कानून (1949) में जरुरी बदलावों के लिए भी रास्ता साफ़ हो गया है। इस कानून में दो नए प्रावधान जोड़े गए हैं। जिसके तहत आरबीआई तय समय-सीमा के अंदर एनपीए के हल को लेकर जरुरी निर्देश दे सकेगा। और डिफाल्टर के खिलाफ इन्सॅाल्वेन्सी एंड बैंकरप्सी कोड (किसी को दीवालिया घोषित करना) के तहत कारवाई कर सकता है।
वित्त सचिव अशोक लवासा ने कहा है कि बैंकिग रेगूलेशन एक्ट में किए गए बदलाव से एनपीए की समस्या का निराकरण करने में आसानी होगी। बैंक इस प्रावधान के जुड़ने से एनपीए के मुद्दों को हल करने में सशक्त होंगी।
गौरतलब है कि देश में बीते कुछ सालों से एनपीए की समस्या बढ़ती जा रही है। आरबीआई अटके कर्ज से छुटकारा पाने के लिए ज्वाइंट लेंडर्स फोरम के गठन, कॅारपोरेट ॠण के पुर्नगठन की व्यवस्था, डूबे कर्ज के सही आंकड़े पेश करने के लिए बैंकों पर दबाब आदि पहल कर चुकी है। लेकिन इसमें आरबीआई को असफलता ही हाथ लगी है।
प्राप्त आंकड़ो के अनुसार बीते वर्ष 24 सरकारी बैंकों के एनपीए में 56.4 फीसदी बढ़ोतरी हुयी है। आंकडों के अनुसार 2016 में यह 6.15 लाख करोड़ रुपये हो गया जो 2015 में 3.93 लाख करोड़ रुपये था। वहीं 2016 में बैंकों द्वारा दिए गए कुल कर्ज में एनपीए की हिस्सेदारी 7.16 से बढ़कर 11 फीसदी हो गई है।
केंद्रीय मंत्रिमंडल ने 3 मई 2017 को एनपीए की समस्या से निपटने के लिए बैंकिंग नियमन कानून में संशोधन के अध्यादेश को मंजूरी दी थी।