वर्तमान परिस्थितियों में उद्योगों को काफी संघर्ष करना पड़ रहा है लाभ के साथ साथ स्वयं को बचाने के लिए भी। इन्हीं संघर्ष कर रहे उद्योगों में से एक क्षेत्र रबड़ का भी है।
लगातार संघर्ष कर लाभ का अर्जन करना और निरंतर प्रगति के पथ पर अग्रसर होते रहना हर व्यापारी की आकांक्षा होती है। यही आकांक्षा उसको आगे लेकर जाती है।
रबड़ उद्योग से जुड़े लोग भी इसी महत्वाकांक्षा के साथ चलते हैं जो कि उनका अधिकार भी है।
परन्तु बीते कुछ वर्षों से वह लगातार संघर्ष कर रहे हैं जिसका कारण है कच्चे माल की बेहद कमी, साथ ही साथ भाव में काफी अधिक मात्रा में उतार चढ़ाव।
ज्ञात रहे रबड़ के उद्योग् में अधिकतर मात्रा में (लगभग 80 प्रतिशत से भी ज्यादा) छोटे व् मझोले क्षेत्र के उद्योग् जुड़े हुए हैं।
व्यापार जगत हमेशा एक सीमित मात्रा की गणना लेकर चलता है जिसमें सभी समीकरणों का ध्यान रखते हुए वह व्यापारिक निर्णय करता है। रबड़ के भाव में आने वाले भारी उतार चढ़ाव इन व्यापारिक निर्णयों को प्रभावित करते हैं।
रबड़ के उत्पादन को शुक्र चन्द्र से सीधा जोड़ा जा सकता है। रबड़ का उपयोग ज्यादातर टायर बनाने में होता है। शुक्र के प्रभाव से भूतकाल में काफी लाभ इस क्षेत्र की कंपनियों को हुआ परन्तु वर्तमान में आने वाली कमजोरी को सूर्य प्रभाव के उदय के साथ जोड़ कर कुछ हद तक समझा जा सकता है।
रबड़ प्राकृतिक पदार्थ है वहीं सूर्य के साथ-साथ शनि का प्रभाव अधिकांश औद्योगिक उत्पादन क्षेत्र के लिए महत्वपूर्ण माना गया है।
पिछले कुछ वर्षों में सूर्य ने लगातार अपने प्रभाव का असर दिखने की चेष्टा की, वहीं वर्तमान में शनि धनु राशि में प्रवेश करने के बाद एक असमंजस भरी स्थिति का निर्माण होता दिखाई देता है जो की नतीजे चाहे राजनीति से सम्बंधित हो अथवा प्राकर्तिक उत्पादित पदार्थों से, को कुछ हद तक प्रभावित कर सकता है।
माना अभी कुछ समय से संघर्ष जारी है और जैसा की नियति होती है समस्त काल परिस्थितियां अस्थाई ही होती है असमंजस का यह काल भी स्थाई नहीं है, इसे भी बीत ही जाना है तो धीरज के साथ नियत मार्ग पर सूझ बूझ के साथ चलना ही समझदारी रहेगी।
आत्म विश्वास को बनाए रखे यही संदेश है ज्योतिष की गणनाओं का।
(उपरोक्त लेख मात्र वर्तमान स्थिति को समझने के लिए ज्योतिष संशोधन शोध का एक भाग है। इसके लेखक नवनीत ओझा ज्योतिष संशोधक एवं आध्यात्मिक साधक हैं। उपरोक्त व्यक्त किये गए विचार लेखक के अपने विचार हैं।)