भारतीय करदाताओं की यह आदत में शुमार है कि वह कर रिटर्न भरने के लिए अंतिम क्षण तक इंतजार करते हैं। वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) के मामले में भी उनकी यह आदत बदलने की संभावना कम ही है।
वस्तु एवं सेवा कर नेटवर्क (जीएएसटीएन) के अधिकारियों ने बताया कि वे लोगों को सलाह दे रहे हैं कि जीएसटीएन में अपने बिलों को अपलोड करने के लिए अंतिम तिथि तक का इंतजार न करें।
जीएसटीएन के मुख्य कार्याधिकारी प्रकाश कुमार ने कहा, ‘हमने सिस्टम को इस तरह से तैयार किया है जिससे कुल पंजीकृत करदाताओं में से तकरीबन 50 फीसदी अंतिम कुछ दिनों में एकसाथ अपने दस्तावेज अपलोड कर सकें। भारी ट्रैफिक के बावजूद सिस्टम क्रैश नहीं करेगा।’ बड़ी कंपनियों की मदद के लिए जीएसटी सुविधा प्रदाताओं (जीएसपी) का गठन किया गया है, जो कंपनियों एवं जीएसटीएन के बीच मध्यस्थ का काम करेंगे।
पोर्टल के जरिये लेनदेन के रखरखाव के लिए जीएसटीएन ने दिल्ली और बेंगलूरु में सर्वर स्थापित किया है। इसे एक माह में 3 अरब बिलों को हैंडल करने की क्षमता के अनुरूप बनाया गया है। करदाता समयबद्घ तरीके से बिलों को अपलोड कर सकें, इसके लिए अधिकारी जागरूकता अभियान शुरू करने की भी योजना बना रहे हैं।
विभिन्न राज्य सरकारों और केंद्र में करीब 80 लाख पंजीकृत व्यापारी और कंपनियां पंजीकृत हैं, जिनमें से 56.5 लाख ने जीएसटीएन पर पंजीकरण करा लिया है। इसके तहत प्रत्येक करदाता को उनकी स्थायी खाता संख्या (पैन) और राज्य के पंजीकरण के आधार पर 15 अंकों की जीएसटी आईडी संख्या का आंवटन किया जाता है।
जीएसटी के तहत करदाता को हर माह दो रिटर्न – जीएसटीआर -1 (कंपनी के आपूर्तिकर्ताओं के लिए) और जीएसटीआर-2 (इसके खरीदारों के लिए) दाखिल करना होगा। जीएसटीआर-1 में फर्म को बीते महीने की गई सभी खरीदारी का विवरण देना होगा। जिन आपूर्तिकर्ताओं से वस्तु एवं सेवाओं की खरीद की गई है, उसका विवरण भी देना होगा। यह आंकड़ा जीएसटीआर-2 में दिखेगा और इसके आधार पर ही फर्म इनपुट टैक्स क्रेडिट का लाभ उठाने में सक्षम होंगी।
मारुति को उदाहरण के तौर पर लें। इसमें कंपनी को आपूर्तिकर्ताओं से प्राप्त बिलों को जीएसटीआर-1 में अपलोड करना होगा और अपनी बिक्री को जीएसटीआर-2 में दिखाना होगा। आपूर्तिकर्ता/खरीदार के पास अधिकार होगा कि वह दी गई सूचना को स्वीकार करे, उसमें बदलाव करे या उसे रद्द करे। अगर दोनों पक्ष बिलों को स्वीकार करते हैं तो एक अन्य फॉर्म जीएसटीआर-3 स्वत: जेनरेट होगा, जिसमें इनपुट टैक्स क्रेडिट का दावा किया जा सकता है।
इन रिटर्न को दाखिल करने की समयसीमा तय है। जीएसटीआर-1 को माह की 10वीं तारीख तक दाखिल किया जाएगा, वहीं जीएसटीआर-2 को 15वीं तारीख तक भरना होगा। प्रत्येक कंपनी को इन तीनों तरह के रिटर्न को हर माह भरना होगा और कंपनी द्वारा प्राप्त सभी बिलों को सिस्टम में अपलोड करना होगा।
कंपनियां इनपुट टैक्स क्रेडिट का लाभ उसी स्थिति में सकती हैं जब सामने वाली फर्म अपने सभी बिलों को अपलोड कर उसे स्वीकार करेंगी।इसमें जीएसटीआर-5 जैसे अन्यश् फॉर्म भी होंगे, जो अनिवासी विदेशी करदाताओं के लिए होंगे और जीएसटरीआर-10 सरकारी इकाइयों के लिए होंगे। जीएसटीएन डैशबोर्ड पर फर्म चुकाए गए विभिन्न करों – केंद्रीय जीएसटी, राज्य जीएसटी, एकीकृत जीएसटी, उपकर को देख सकेंगे।
जीएसटीएन के अधिकारियों ने कहा कि राज्य जीएसटी की प्राप्तियों को भारतीय रिजर्व बैंक के माध्यम से राज्यों को दिया जाएगा।मारुति सुजूकी या हिंदुस्तान यूनिलीवर जैसी बड़ी कंपनियां जो काफी मात्रा में बिल जेनरेट करती हैं, वह जीएसटी सुविधा प्रदाताओं की सेवा ले सकते हैं, जो कंपनियों और जीएसटीएन के बीच मध्यस्थ का काम करेंगे।
इसके साथ ही छोटी और मझोली आकार की कंपनियां (SMEs) को किस तरह से सिस्टम में एकीकृत किया जाए, इसमें मदद के लिए जीएसटी सुविधा प्रदाता सहयोग करेंगे। इनमें विभिन्न तरह के करदाताओं, जैसे एसएमई और छोटे खुदरा विक्रेता शामिल हैं। हालांकि अभी ऐसे प्रदाताओं की संख्या कम है। जीएसटीएन ने फिलहाल 34 सुविधा प्रदाताओं को मंजूरी दी है।
Source: Business Standard