GST: छोटे कारोबार कम दिखा सकते हैं अपनी आय


आगामी 1 जुलाई से नई अप्रत्यक्ष कर प्रणाली वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) लागू होने पर सूक्ष्म एवं लघु एवं मझोले उद्यम अपनी सालाना आय कम दिखा सकते हैं। ये उद्यम 20-50 लाख रुपये दायरे में रहने के लिए ऐसा कर सकते हैं ताकि उन पर 1-2 प्रतिशत कर दर लागू हो सके। जीएसटी के […]


GST-l-reuआगामी 1 जुलाई से नई अप्रत्यक्ष कर प्रणाली वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) लागू होने पर सूक्ष्म एवं लघु एवं मझोले उद्यम अपनी सालाना आय कम दिखा सकते हैं। ये उद्यम 20-50 लाख रुपये दायरे में रहने के लिए ऐसा कर सकते हैं ताकि उन पर 1-2 प्रतिशत कर दर लागू हो सके।

जीएसटी के तहत मानदंडों के पालन से कंपनियों को दीर्घ अवधि में लाभ होगा, जिससे  सस्ती पूंजी तक उनकी पहुंच आसान होगी और लागत भी कम आएगी। हां, लघु अवधि में उनकी रफ्तार जरूर धीमी होगी क्योंकि असंगठित क्षेत्र से संगठित क्षेत्र में आने पर उनकी प्रतिस्पद्र्धी क्षमता प्रभावित होगी।

जीएसटी के मौजूदा प्रस्ताव पत्र में 20 लाख रुपये से कम राजस्व वाले कारोबार को जीएसटी नेटवर्क (जीएसटीएन) के लिए पंजीकृत नहीं कराना होगा। इनपुट क्रेडिट का लाभ लेने के लिए वे स्वयं को पंजीकृत करा सकते हैं।

जीएसटी के अनुसार छोटे कारोबार 20-50 लाख रुपये के दायरे में होंगे। विश्लेषकों का कहना है कि कम कर का भुगताने करने के लिए 50 लाख रुपये से अधिक कारोबार करने वाली कंपनियां अपनी आय कम बता सकती हैं।

खेतान ऐंड कंपननी के पार्टनर अभिषेक रस्तोगी कहते हैं, ‘ऐसे कई मामले आ सकते हैं, जिसमें छोटे कारोबार अधिक कर देने से बचना चाहेंगे। मान लें एक परिवार नियंत्रित कारोबार का राजस्व 90 लाख रुपये सालाना है। यह जीएसटी के तहत कम कर का भुगतान के लिए परिवार के सदस्यों के नियंत्रण में 45-45 लाख रुपये के दो कारोबार दिखा सकता है।’

के्रडिट सुइसे में इंडिया इक्विटी स्ट्रैटेजिस्ट नीलकंठ मिश्रा कहते हैं, ‘लोग आगे भी नई अप्रत्यक्ष कर प्रणाली में तिकड़म करने से बाज नहीं आएंगे। हालांकि नियम-कानूनों का अनुपालन बढऩे के बाद अपनी आय कम दिखाने वाली कंपनियों की संख्या में गिरावट आएगी। दीर्घ अवधि में उन उद्यमों को मुश्किलें पेश आएंगी, जो कर देनदारी से बचते रहते हैं।’

सूक्ष्म, लघु एवं मझोले उद्यम मंत्रालय की एक ताजा सालाना रिपोर्ट के अनुसार करीब 5.1 करोड़ एमएसएमई कारोबार हैं, जिनमें 11.7 करोड़ लोग काम करते हैं। इन एमएसएमई कारोबार का संयुक्त नियत परिसंपत्ति मूल्य करीब 15 लाख करोड़ रुपये है। इनमें करीब 55 प्रतिशत कारोबार असंगठित क्षेत्र का हिस्सा हो सकते हैं।

विश्लेषकों का कहना है कि नियमों के अनुपालन पर व्यय बढऩे से असंगठित क्षेत्र से संगठित क्षेत्र में कदम रखने वाले कारोबार की प्रतिस्पद्र्धी क्षमता निकट अवधि में कम हो जाएगी। हालांकि औपचारिक क्षेत्र में आना अंतत: इनके लिए लाभकारी साबित होगा।

मिश्रा कहते हैं, ‘नई जीएसटी प्रणाली में औपचारिक क्षेत्र में आने से छोटे कारोबारी की सस्ती पूंजी तक पहुंच आसान होगी, साथ ही किसी विवाद से निपटने के लिए उन्हें कानूनी जरिया भी मिल जाएगा।’

रस्तोगी कहते हैं, ‘जीएसटी के तहत एक ऐसी स्थिति बनेगी जिनमें ज्यादातर पंजीकृत इकाइयां रिवर्स चार्ज के कारण केवल दूसरी पंजीकृत इकाइयों से ही कारोबार करना चाहेंगी।’ रिवर्स चार्ज का मकसद कर अनुपालन और राजस्व बढ़ाना है।

सेवा कर में यह संकल्पना पहले से ही मौजूद है। जीएसटी प्रणाली में रिवर्स चार्ज सेवा एवं वस्तु दोनों के लिए लागू हो सकता है। इसका भुगतान वस्तुओं या सेवाओं के प्राप्तकर्ता द्वारा चुकाया जाएगा। अगर कोई गैर-पंजीकृत कारोबारी पंजीकृत डीलर को वस्तु या सेवा की आपूर्ति करता है तो पंजीकृत कारोबारी को मुहैया कराई गई सेवा या वस्तु पर जीएसटी का भुगतान करना है।

रस्तोगी कहते हैं, ‘लिहाजा पंजीकृत कारोबार अनौपचारिक क्षेत्र के कारोबार के साथ सौदा नहीं करना चाहेंगे। नियमों का अनुपालन नहीं करने या संगठित क्षेत्र से दूर रहने की किसी कवायद से कालांतर में उनके कारोबार पर ही असर पड़ेगा।’

Source: Business Standard

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