सरकार, बैंको द्वारा एमएसएमई के न चुका पाने वाले ऋण को गैर-निष्पादित परिसंपत्तियों (एनपीए) अथवा बैड लोन के रुप में घोषित करने के समय 90 दिन की समय-सीमा को दुगुना करके 180 दिन करने पर विचार कर रही है।
केंद्रीय एमएसएमई मंत्री कलराज मिश्र की अध्यक्षता में हो रही 15वीं राष्ट्रीय एमएसएमई बोर्ड की बैठक में एमएसएमई सचिव केके जालान ने कहा कि विभिन्न उद्योग संघठनों के कई बार के आग्रह के बाद मंत्रालय ने इस मुद्दे को उठाया है। और इस बारे में उच्च स्तर पर विचार किया जा रहा है।
मिश्रा ने भी इस कदम की पुष्टि करते हुए स्वीकार किया कि देरी से जुड़े भुगतान प्रावधानों को बदलने की आवश्यकता है और इस दिशा में कैबिनेट द्वारा फिर से संशोधन कदम उठाए जा सकते हैं।
कुछ रिपोर्ट्स के मुताबिक, छोटी इकाइयों को 10 लाख रुपये तक का जमानत-सुरक्षा-मुक्त ऋण कथित रूप से नहीं दिया जा रहा है। मिश्रा ने बैंकों से आग्रह किया कि बैंक लोन देने में आना-कानी न करें और NPAs को लेकर रिवाइवल और रिकवरी को मिलाये नहीं। क्योंकि इससे सिक एमएसएमई के पुर्नजीवित होने में परेशानी होगी। बैंक के अधिकारियों को उचित मूल्यांकन करना चाहिए ताकि सूक्ष्म इकाइयाँ प्रक्रिया के दौरान ही समाप्त ना हों।
एक छोटे उद्योग संगठन के मुताबिक झारखंड में 600-700 सूक्ष्म इकाइयों को एनपीए घोषित कर दिया गया है। जबकि भारतीय रिजर्व बैंक और वित्त मंत्रालय के पत्रों के बावजूद बैंक इन इकाइयों की मदद नहीं कर रहे थे।
मिश्रा ने कहा कि पोर्टल पर 1,650 करोड़ रुपये के डिले पेमेंट से संबधित 3,700 मामलों को रखा गया है। उन्होंने कहा कि इससे देरी से भुगतान में मदद मिलेगी, जो शायद स्टार्टअप के लिए सबसे बड़ी समस्या है।
हालांकि एमएसएमई मंत्रालय ने बीमार उद्यमों के पुनरुत्थान और पुनर्वास के लिए एक योजना शुरू कर की है, जिसके तहत बैंकों को विभिन्न शाखा-वार समितियों की स्थापना के लिए कहा गया है। कई राज्यों ने शिकायत की है कि ऐसी समितियों की अभी तक स्थापना नहीं हुई है या नियमित बैठकें नहीं हो रही हैं। एमएसएमई क्षेत्र, जिनमें सूक्ष्म इकाइयों की हिस्सेदारी 90% से अधिक होती है, कुल एनपीए का 45% होती हैं।
भारतीय रिज़र्व बैंक के आंकड़ों के मुताबिक, बीमार एमएसएमई की संख्या 2015-16 में बढ़कर 4,86,291 हो गई, जिनका बैंकों पर 40,642 करोड़ रुपये बकाया है।