27 अप्रैल को होने वाली नेशनल बोर्ड फॉर माइक्रो, स्मॉल एंड मीडियम एंटरप्राइजेज की बैठक में इस पर विचार किया जाएगा। इसमें सरकारी खरीद पॉलिसी का दायरा बढ़ाने का प्रपोजल है, वहीं इस स्कीम का गलत फायदा उठाने वाले कारोबारियों को सजा देने पर भी विचार किया जा सकता है।
छोटे कारोबारियों को ऐसे मिलेगा फायदा
सरकारी खरीद पॉलिसी के तहत अभी सरकारी डिपार्टमेंट और सेंट्रल पीएसयू के लिए यह जरूरी है कि वे अपनी कुल खरीद का 20 फीसदी छोटे कारोबारियों ( माइक्रो एवं स्मॉल एंटरप्राइजेज) से खरीददारी करनी होगी।
लेकिन अब मिनिस्ट्री ऑफ एमएसएमई का प्रस्ताव है कि केंद्र सरकार के अधीन काम कर रही सभी संवैधानिक एवं ऑटोनोमस बॉडीज, सोसाइटीज और ट्रस्ट को पॉलिसी के दायरे में लाया जाएगा। इतना ही नहीं, सेंट्रल यूनिवर्सिटीज, टेक्नोलॉजी सेंटर जैसी बॉडीज के अलावा केंद्र सरकार की मिनिस्ट्री या डिपार्टमेंट्स के अंतर्गत आने वाले इंस्टीट्यूशन या ऑटोनोमस बॉडीज पर भी लागू होगा। यानी कि इन संस्थानों को भी अपनी कुल खरीद की 20 फीसदी खरीददारी छोटे कारोबारियों से करनी होगी।
किन्हें मिलेगी सजा
नेशनल बोर्ड फॉर एमएसएमई की बैठक के एजेंडे के मुताबिक, सरकारी खरीद पॉलिसी में यह भी प्रावधान किया जाएगा कि यदि कोई पॉलिसी का गलत ढ़ंग से फायदा होता है या पात्र न होने के बावजूद भी यदि पॉलिसी का बेनिफिट लेता है तो उसके खिलाफ सजा का प्रावधान किया जाएगा।
बढ़ सकते हैं आयटम्स
सरकारी खरीद पॉलिसी के तहत 358 आयटम्स को रिजर्व किया गया है, पीएसयू को जिनकी खरीददारी छोटे कारोबारियों से ही करनी होगी। अब प्रस्ताव है कि इस लिस्ट पर भी विचार किया जाए ताकि लिस्ट को अधिक साफ और स्पेसफिक किया जा सके।
मिनिस्ट्री सूत्रों का कहना है कि लिस्ट में आयटम बढ़ाने पर भी विचार किया जा सकता है, ताकि छोटे कारोबारियों को और फायदा पहुंच सके। इसके अलावा पॉलिसी में यह भी प्रोविजन किया जा सकता है कि पीएसयू द्वारा जारी किए जाने वाले टेंडर में एमएसई से खरीददारी के बारे में पूरी तरह से क्लियरिटी हो।
अनिवार्य होने के बाद घटी खरीददारी
मिनिस्ट्री ऑफ एमएसएमई की रिपोर्ट बताती है कि पॉलिसी एक अप्रैल 2012 में लागू की गई थी और एक अप्रैल 2015 से इसे अनिवार्य कर दिया गया, लेकिन अनिवार्य होने के बाद पीएसयू ने खरीददारी बढ़ाने की बजाय कम कर दी।
आंकड़ों के मुताबिक साल 2013-14 में 104 पीएसयू ने छोटे कारोबारियों से खरीददारी की, लेकिन कुल खरीद का 15.06 फीसदी, इसके बाद 2014-15 में 11.61 फीसदी ही खरीददारी की गई और एक अप्रैल 2015 से 20 फीसदी अनिवार्य होने के बावजूद 13.52 फीसदी ही खरीददारी की गई।
Source: Money Bhaskar